लखनऊ।
परीक्षा केंद्र से मुख्य मार्ग तक, कई स्थानों में तैनात है, ठीकेदारों के मोबाइल धारी दलाल। केंद्र को दे रहे हैं- अधिकारियो के आने की पूर्व सूचना ........... !!
सरकार बदल गयी, पर- शिक्षा के मंदिर में निरंतर चढ़ रहा है, चढ़ावा। मंदिर के मठाधीशों और नक़ल के ठीकेदारो में चल रहा है, प्रसाद बटवारा का खेल.....!!
बार बार आ रही है नक़ल की दुर्धर्ष व्यभिचार की दुर्गन्ध, पर- विभाग के अधिकारी क्यों है मौन...... ??
परीक्षा केंद्र तथा परीक्षा की पारदर्शिता जांचने की जिम्मेदारी उन्ही महान व्यक्तियो के हाथ में है, जिन्होंने प्रबंधकीय विद्यालयों को परीक्षा केंद्र के रूप में स्वीकृति देने के एवज में पहले ही डकार चुके ढेर सारी लक्ष्मीया........ !!
कहाँ गया वह- "परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम । धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।। ....... ??
शिक्षा के मंदिर में ही क्यों देखना पड़ रहा है शिक्षा का वीभत्स छाया चित्र ! क्या है इसका समाधान का उपाय और कौन होगा उद्धारक...... ??
जानिए कैसे चरितार्थ हो रही है, शिक्षाओं के मंदिर में- "ढेर योगी उजड़ा मठ.........!!
सन 2017 के परिषदीय परीक्षा को नक़ल विहीन तथा परिष्कृत परिपाटी से संपन्न कराने का, योगी सरकार की संकल्प, वास्तविकता की धरा तल से अभी भी अनेक दूर है। मायावी मुलायम के मोहनी महामाया से उत्पन्न वे नक़ल के विषैले पौधे, इन दस- पंद्रह वर्षो में विशाल विषवृक्ष का रूप धारण कर चुके है। जिसने भी इस दूरहः दुर्व्यवस्था के ओर अंगुल उठाने का दुःसाहस किया, उसकी अंगुली को तोड़ कर पंगु कर दिया गया अथवा उसे ही इस दुनिया से पृथक कर दिया गया।
यद्यपि नयी सरकार के दृढ निश्चयी मुख्य मंत्री, योगी आदित्यनाथ जी ने इस शिक्षा की मायावी भस्मासुरों से दो दो हाथ कर लेने की भीष्म प्रतिज्ञा कर लिया है, पर- शिक्षा के इन रक्त बीजो से कैसे निपट पाएंगे, जब समाज द्रोही सरकारी व प्राइवेट तक्षकों ने सत्ता का रंग बदलते ही अपना रंग बदल कर योगी रंग में रंग गये है। इन सिंडिकेट की व्यापकता तथा भयंकरता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि- योगी जी के संकल्प के कारण, 2017 के परीक्षा में अब तक लाखों परीक्षार्थी ने परीक्षा छोड़ने को बाध्य हुए। पंद्रह हजार से अधिक छात्र नक़ल करते हुए पकडे गए। सैकड़ो शिक्षाधिकारी व उन के सह कर्मीयो को शिक्षा के मंदिर में अनैतिक संसाधनो का उपयोग करने में तथा अनैतिक धनोपार्जन के आरोप में नौकरी से निलंबन कर उन के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत किया गया। और- प्रबंधकीय विद्यालय के सैकड़ो प्रबंधकों पर मुकदमा दर्ज कर विद्यालयो की मान्यता रद कर दी गयी या तो ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया। फिर भी रोज निरंतर विभिन्न सूचना माध्यमो से सरकार की पारदर्शी परीक्षा संपन्न कराने की व्यर्थता ही प्रकाश में आ रही है।
विडम्बना की बात यह है कि- एक तरफ जहां परिश्रमी शिक्षकों द्वारा अकूत मेहनत कर, निद्रा त्यागी दृढ निश्चयी मेधावी छात्रों को सफलतम विद्यार्थियों के श्रेणी में खड़ा करने का भागीरथी प्रयास किया जा रहा है, वहीँ दूसरी ओर नक़ल सिंडिकेट द्वारा बिना पढ़े, बिना विद्यालय गए, घर बैठे बैठे भौंडे छात्रों को टॉपर बना देने की अप्रतिम मुहीम चलायी जा रही है। "अभिव्यकि की आजादी" की तरह नक़ल करना-कराना इन भ्रष्ट तत्वो के लिए मौलिक अधिकार बन कर रह गया है। शिक्षा मंदिर के इन जयचंदो और नाजायज कर्मकाण्डी पंडितो की मिली भगत से बनी इन क्लासिकल सिंडिकेट, शिक्षा व्यवस्था को ही खड़ा खड़ा निगल जा रहा है। इस से नकली मेरिट व्यवस्था, मेधावी विद्यार्थियों के सिर चढ़ कर बोलने लगी है। फल स्वरुप- मेहनती मेधावी विद्यार्थी, जिसे हम देश का वास्तविक व भविष्य के कर्णधार कह सकते है, इन नकली टॉपरों के पैरों से रौंदा जाने लगा है। मेधावी छात्र में हताशा पनपने लगी है और वे डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे है। विद्यार्थियो में नशाखोरी तथा आत्म हत्या की प्रवृति दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। अभिभावको व बूद्धिजीवीयो में इतना अधिक निराशा व्याप्त हो गयी है कि- कितने ही ऐसे अभिभावक अपने संतानों के अंधकार मयी भविष्य की चिंता से पीड़ित होकर , वे भी "जियो और जीने दो" का शार्ट कट फार्मूला अपनाने को, उसी रास्ते पर चल पड़े है, जिस राह की लकीरें इन सिंडिकेट द्वारा खींची गयी है। नक़ल के माध्यम से उत्तीर्ण, इन नव नकली पंडितो ने, अपनी नकली विद्या के असली मैरिट और रिश्वत रूपी उपहार के बल पर, नौकरी भी हथिया रहे है। नौकरी के प्राप्ति में प्रदान की गयी रिश्वत की भरपाई भी, वे रिश्वत और अवैध हथकंडे से कर लेते है। ऐसे ही दुर्जनो को जब कभी रिश्वत लेते हुए पकड़ लिया जाता है, तो वे रिश्वत दे कर छूट भी जाते है। कभी न थमने वाली यह दुर्व्यवस्था निरंतर चक्रानुसार पीढ़ी दर पीढ़ी तक चलती आ रही है। ऐसे में इस भयानक दुर्व्यवस्था से त्राण पाने को, इस बार जनता ने एक नया प्रयोग किया। इन्होंने सरकार को ही बदल दिया। सुदीर्घ काल बाद- सरकार तो बदल गयी, पर- सम्बंधित विभाग के वे अधिकारीया जिन्हें नक़ल कराने की और नक़ल की गुप्त टेंडर वितरण का पहले से महारथ हासिल है, वे समाज द्रोही बेईमानो की कुर्सी अभी भी यथावत विद्यमान है। इन बेईमानो का दुःसाहस इसी से पता चलता है कि - नक़ल कराने के चलते, कई कई BSA तथा इन से सम्बंधित अधिकारी व कर्मचारियो की नौकरी से छुट्टी हो गयी या इन्हें निलंबित कर दिया गया। शिक्षा विभाग से सम्बंधित विभागीय कर्मचारीयों का अवकाश, मातृ अवकाश, प्रन्नति, वेतन भुगतान, ट्रांसफर, MDM, कन्वर्जन मनी, स्कूल ड्रेस, छात्रवृत्ति, भवन निर्माण आदि दर्जनों उपक्रमो के माध्यमो से अवैध कमाई निगलने वाले यह लोकतंत्र के असामाजिक मगरमच्छो ने, आने वाले पीढ़ियो द्वारा निर्मित होने वाली "सोने का चिड़िया" को भी उस के सुनहरे स्वप्न के गर्भ में ही खा गये। और- उस पीढ़ी को बर्बाद कर, उसे रसातल में डालने के कुत्सित प्रयास में भी सफल होते गये। अब तक इन शिक्षा के माफियाओ को पनपने और पुष्पित- पल्लवित होने के सुवर्ण अवसर में बाधा उत्पन्न करने और परीक्षा में सुधार लाने का एक माध्यम रहा "मिडिया"। पर- इन धंधे में जुड़े लोग, पूर्वव्रती सरकारों के साथ मिल कर मिडिया का ही पर कट डाला। घोर आश्चर्य तो यह है कि- जिस देश के 18 से 25 वर्ष आयु वर्ग के हजारो युवा सेनाओं ने, अपनी प्राणों को उत्सर्ग करते हुए हजारो पाकिस्तानी सेना को मृत्यु के गह्वर में भेज दिया, और उन दहशतीओ से कारगिल को वापस छीन कर, उस दुस्तर दुर्गम पर्वत शिखर पर पुनः भारतीय झंडा उत्तलन किया, उसी आयु वर्ग के परीक्षार्थियो के माथे कलंक का टिका लगाते हुए पूर्वर्ती सरकार ने तर्क दिया, "परीक्षा केंद्र में पत्रकारों के कैमरे के क्लिक से परीक्षार्थियो में दहशत आ जाती है, अतः- परीक्षा केंद्र में पत्रकारो का प्रवेश निषेध"।
इस का प्रतिफल यह हुआ कि-इन सरकारी व गैर सरकारी शिक्षा माफियाओं का धंधा निरंतर फलते फूलते चला गया। वे अपने कार्य व व्यवहार में निरंकुश होते गये। पढ़ा कर पास कराने का उत्तरदायित्व समाप्त होता गया। देश का भविष्य गर्त में गया। सिंडिकेट अपने मिशन में और अपविद्यार्थी अपने मेरिट में पास हो गए। और बेचारे मिडिया अपने मिशन में फेल हो गयी।
सब से आश्चर्य तो यह है कि- कुछ जनपदों में धड़ल्ले से हो रही नक़ल का प्रमाण सहित छाया चित्र, मिडिया में बारम्बार प्रकाशित होने पर भी, अंततः - विभाग व प्रशासन मौन क्यों है ! कही कही तो सम्बंधित मिडिया कर्मियो को मारा पीटा भी जा रहा है, प्राणों की बलि चढ़ाने की धमकी भी दी जा रही है, मामला पुलिस थाने में भी पहुँच रही है, मिडिया कर्मी इन सिंडिकेट से भयभीत है। सक्षम या समकक्ष अधिकारियो के संज्ञान में आने के बाद भी वहाँ निर्बाध गति से नक़ल का खेल निरंतर चल रहा है।
ऐसे ही एक परीक्षा केंद्र है, पूर्वांचल के रतन पूरा, जनपद मऊ का। जहाँ परीक्षा के पहले ही उत्तर मालाओं की प्रतिलिपि पुस्तिका तैयार कर, उसकी जीराक्स कॉपी का जीवाश्म निकल कर कई दिनों से परीक्षार्थियो में बाटी जा रही है। और आरोप है कि- परीक्षा केंद्र के प्रांगण में BSA को मिठाई खाते हुए कैमेरा में कैद की जा रहा है। बार बार , दिन- प्रतिदिन इस प्रकार की खबर फोटो सहित मिडिया में प्रकाशित होने के बाद भी इन दुःसाहसी दुर्जनो के विरुद्ध, न तो सरकार ही कोई कदम उठा रही है , न ही सम्बब्धित जिले के आला अधिकारी ! कथित रूप से सम्बंधित SDM महोदय को भी सुचना दी गयी, पर उन का कहना है कि- नयी सरकार के कार्य में व्यस्त होने के कारण वे कुछ भी करने में असमर्थ है। ऐसे लगा, जैसे- पारदर्शी परीक्षा संपन्न कराना सरकारी कार्य नहीं है।अंततः कैसे इस नक़ल की आपदाओं से देश को मुक्त कर सकते है?
नवीन सरकार को नक़ल को जड़ से समाप्त करने के लिए पूर्ववर्ती सरकारी विवेक हीन शिक्षा नीतियो के कारण उत्पन्न हुई व्यवस्था को भी बदलनी होगी तथा प्राथमिक विद्यालयों की दुर्दशा ग्रस्त शिक्षा की स्थिति में सुधार लाना होगा। ताकि- उन विद्यालयों में "तमसो मा ज्योतिर्गमय" की दीप शिखा से केवल विद्यालय की दीवाल ही नहीं, वरन - समस्त संसार प्रकाश मय हो उठे।।
(सत्य निष्ठ अधिकारी, कर्तव्य निष्ठ कर्मचारी तथा निर्मल अंतःकरण के प्रबंधकों को विद्यार्थियो व अभिभावकों का नमन)
Editing report by......
Dr. Tapan Kumar Pandey
Article Writer,
रिपोर्ट : लखनऊ ब्यूरो
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Publish By - वीर सिंह
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