सच्चाई, सचरित्रता, सादगी और सतकर्म के दीप हर मन में जलाने का पर्व है दीपावली।

आज़मगढ़।

रिपोर्ट: वीर सिंह

लेख: राम अंतर्यामी और विश्वव्यापी हैं तथा ब्रह्माण्ड के कण-कण में व्याप्त है।राम का अंतर्यामी, विश्वव्यापी होना और ब्राह्मण के कण-कण में व्याप्त होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि-राम की लोकमानास मे शाश्वत व्याप्तता। राम लोकमानास मे रचते -बसते हैं और लोक जीवन में सर्वदा रमण करते हैं। इसलिए उनका अयोध्या आगमन शाश्वत लोक उत्सव में बदल जाता हैं। युगों की सीमाओं से परे यह लोक उत्सव दीपोतस्व के रूप मे आज भी निर्बाध रूप से चलन- कलन में जिंदा है। अयोध्या वासियों द्वारा अपने अभिनंदन से अत्यंत अविभूत राम ने राजसत्ता को लोकसत्ता के अधीन कर दिया। राजसत्ता को लोकसत्ता के अधीन करना राम का युगांतरकारी राजनीतिक पराक्रम था। सम्पूर्ण राजसत्ता को लोकसत्ता के अधीन करने का साहस युगों-युगो में विरले शासक कर पाते हैं। राम त्रेता और कलयुग दोनों में सच्चाई, सचरित्रता, सादगी और सतकर्म के आदर्श पुरुष हैं। यह आदर्श पुरुष भारतीय लोकमानास मे गहरे रूप बसा हुआ है। इसलिए राम आराधना और उपासना की अपेक्षा अनुसरण, अनुकरण और आचरण में धारण करने का विषय हैं। देश भर की राम लीलाओं के माध्यम से भारतीय जनमानस अपने हृदय में बसे इस आदर्श पुरुष को अपने चरित्र में धारण करने का प्रयास करता है। इसलिए राम न केवल लोकमानास मे रमण करते हैं बल्कि राम लोक जीवन , लोक परम्परा ,लोक साहित्य, लोक संस्कृति, लोक रंग और लोक चरित्र में शाश्वत है। सच्चाई, सचरित्रता, सादगी और सतकर्म के इस आदर्श पुरुष को लोक जीवन और लोक चरित्र में धारण करना ही वास्तविक दीपोतस्व हैं। दीपोतस्व प्रकाश और उजाले का कारण हैं, जबकि प्रकाश और उजाला दीपोतस्व का परिणाम है। दीपोतस्व का प्रकाश अंदर और बाहर के हर अंधेरे को मिटा देता है। शाश्वत रूप से अंधेरा तभी तिरोहित होगा जब सच्चाई, सचरित्रता, सादगी और सतकर्म का दीप भारतीय लोकमानास के मन, मस्तिष्क और हृदय में प्रज्जवलित होगा।
          एक शासक के रूप में राम प्रजावत्सल के साथ-साथ प्रजा के प्रति समदर्शी हैं। एक ईमानदार, सचरित्र, सत्कर्मी के साथ-साथ समदर्शी शासक ही लोकमंगल और लोक कल्याण सुनिश्चित कर सकता हैं। व्यापक लोक कल्याण की चेतना से परिपूर्ण शासक में दूर दृष्टि, गहन अंतर्दृष्टि के साथ समदृष्टि का होना आवश्यक है। सरयू का तट और सरयू का पवित्र- पावन बहता हुआ जल राम के विवेक, दूरदर्शिता, धैर्यशीलता, गम्भीरता , सचरित्रता और बचनबद्धता का आज भी साक्षी है। परन्तु इसके साथ ही साथ राम भावुकता, व्याकुलता और विह्वलता के साथ-साथ लोक संवेदनाओं के पुंज है। राम में एक तरफ कोमल बाल मन जैसी भावुकता, व्याकुलता और विह्वलता हैं वही लोकहित ,लोक व्यथा और लोक दर्द के प्रति गहरी गहन लोक संवेदना मिलती हैं। अपनी पत्नी के हरण पर भावुक, व्याकुल और विह्वल राम जड, जंगल, पशु पक्षी और वनवासी जन-जीवन से संवाद तथा साक्षात्कार करते हैं। इसलिए राम जड, जंगल और हर जन-जीवन की भाषा और दुख-दर्द को समझते हैं।  रावण द्वारा हरण की गई अपनी अर्द्धांगिनी सीता का पता पशु- पक्षी पेड पौधे सबसे पूॅछते हैं।
 हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी ।
तुम देखी सीता मृगनैनी ।
खंजन सुक कपोत मृगमीना। 
मधुप निकर कोकिला प्रबीना। ।
हे पक्षियों! हे पशुओं! हे भौरों की पंक्तियों ! तुमने कही मृगनयनी सीता को देखा है ?
खंजन, तोता, कबूतर, हिरन, मछली, भौरों का समूह प्रवीण कोकिला। ।
  " सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बचन बिकलाई। ।
जौ जनतेऊ बन बंधु विछोहूॅ। पिता बचन मनतेऊ नहिं ओहूॅ। ।
हे भाई वह प्रेम अब कहाँ है? मेरे व्याकुलतापूर्वक वचन सुनकर उठते क्यों नहीं? 
यदि में जानता कि- वन में मेरा भाई विछोह होगा तो मैं पिता की बात नहीं मानता। 
 राम ने अपनी पीड़ा में वनवासी जन- जीवन की पीड़ा का भी एहसास किया। स्वयं की पीड़ा व्यथा और वनवासी जीवन की पीड़ा व्यथा की अनुभूतियों ने राम को लोकहित के लिए प्रेरित किया। राम जड जंगल जन और जन-जीवन की व्यथा के मर्मज्ञ थे। एक शासक के रूप में राम ने आदर्श चरित्र स्थापित किया। इस आदर्श चरित्र को आचरण और व्यवहार में लाना ही असली दीपावली हैं। 

लेखक: मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 
बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह मऊ।

और नया पुराने