लंका विजय ,अयोध्या वापसी के उल्लास और रामराज्य के आगाज का पर्व है दीपावली


लेख

शुभ दीपावली 

लंका पर विजय के विश्वव्यापी  संदेश---

लेख: दीपोत्सव का पर्व दीपावली महज़ काली, घनी अमावस्या के घनघोर अंधेरे को छाँटने के लिए दिया जलाने का पर्व नहीं है। बल्कि अनेकानेक खुशियों और अनेक संदेशो से परिपूर्ण सम्पूर्ण भारतीय जनमानस को आह्लादित और अनुप्राणित करने वाला पर्व है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा लंका विजय, विजय उपरांत अयोध्या वापसी और सुनहरे जीवन की उम्मीद में कल्याणकारी राज्य की स्थापना की सुनहरी संभावनाओं की सम्मिश्रित खुशी में अयोध्या वासी नाचने, गाने और झूमने लगे। समस्त अयोध्या वासी चौदह वर्ष बाद अपने बीच अपने होनहार, लोकप्रिय , सचरित्र, बचनबद्ध, न्याय प्रिय, प्रजाप्रेमी और समस्त आदर्श गुणों से विभूषित संभावित राजा को पाकर हर्ष , उल्लास और खुशी से सराबोर हो गये।खगोलीय महत्व के साथ -साथ उपरोक्त घटनाओं की पवित्र स्मृतियों में हर साल समस्त भारतवासी हर्ष, उल्लास और उमंग के साथ दीपोत्सव का पर्व दीपावली मनाते हैं। महाबली रावण और अस्त्र-शस्त्र के साथ - साथ छल कपट और मायावी शक्तियों से सुसज्जित राक्षसी सेना को परास्त करना अत्यंत दुष्कर कार्य था। इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम राम को रावण सहित मायावी शक्तियों से लबरेज राक्षसी सेना को परास्त करने के लिए शक्ति स्वरूपा मांँ दुर्गा की विविध रुपों में आराधना और साधना करनी पड़ी।मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उनकी सेना ने साहस, धैर्य और पराक्रम के साथ महाबली रावण को परास्त किया। रावण को परास्त करने के उपरांत मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने महाराज विभिषण का लंका के राजा के रूप में राज्याभिषेक किया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने महाराज विभिषण का राज्याभिषेक कर जिस आदर्श राजनीति का परिचय दिया वह आज भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति को मार्गदर्शित करने वाले सिद्धान्त के रूप स्वीकार किया जा सकता हैं। इस सिद्धांत में विश्वव्यापी संदेश अंतर्निहित है।
                   आज भी विश्व के शक्तिशाली देशों में साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाऐं रह-रह कर हिलोरे लेती रहती हैं। हर शक्तिशाली देश अपनी भौगोलिक सीमाओं को विस्तार देने के लिए आज भी प्रयासरत हैं। पश्चिमी दुनिया के विकसित देशों की गिद्ध दृष्टि तीसरी दुनिया के पिछडे देशो की प्राकृतिक सम्पदा पर हमेशा गडी रहती हैं। विज्ञापनो के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों के बाजारों में अपनी पहुँच का  विस्तार करने के लिए गला-काट प्रतियोगिता कर रही हैं और तरह-तरह-तरह के हथकंडे अपना रहीं हैं। ऐसे समय में मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा लंका पर विजय और विजय के उपरान्त लंका के साथ किया गया व्यवहार साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों को संयमित करने का अनुपम उदाहरण हो सकता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने धन सम्पदा से परिपूर्ण स्वर्णजटित लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद भी लंका को अयोध्या के अधीन उपनिवेश नहीं बनाया बल्कि लंका की धन सम्पदा और लंका का राज्य रावण के छोटे भाई राजा विभिषण को सौंप दिया। सम्पूर्ण विश्व के इतिहास में ऐसा अनुपम उदाहरण अंयत्र नहीं मिलता है। इस धरती पर कोई भी राज्य या राजा अगर शक्तिशाली बनकर उभरे तो अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए उन्होंने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 
         अपने राज्य की भौगोलिक सीमाओं का विस्तार करने के लिए शासकों द्वारा विजय अभियान चलाने का इतिहास अत्यंत प्राचीन काल से पाया जाता हैं। सिकंदर ,नेपोलियन बोनापार्ट, जहीरूद्दीन मोहम्मद बाबर सहित साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के एशिया और यूरोप के दर्जनों शासकों के विजय अभियान का इतिहास में उल्लेख मिलता है। परन्तु सुनियोजित तरीके से कमजोर देशों को अपना उपनिवेश बनाना और उनके प्राकृतिक संसाधनों को हड़पने का इतिहास यूरोप के पुनर्जागरण से आरम्भ होता है।सोलहवीं शताब्दी में हुए पुनर्जागरण और धर्म सुधार आन्दोलन के उपरान्त यूरोपीय महाद्वीप में तर्क बुद्धि विवेक और ज्ञान-विज्ञान का जागरण हुआ। इस महाद्वीप में ज्ञान विज्ञान और तकनीकी के चमत्कार के फलस्वरूप इंग्लैंड, फ्रांस ,जर्मनी, इटली और आस्ट्रिया-हंगरी जैसी महाशक्तियों का उदय हुआ। इन महाशक्तियों ने प्राकृतिक संसाधनों और अपने देश में निर्मित वस्तुओं के बाजार के लिए पूरी दुनिया का बंटवारा कर लिया। न केवल बंटवारा किया बल्कि प्राकृतिक संसाधनों की निर्मम एवं निर्लज्ज लूट और मनुष्य के शोषण की सारी हदो को पार कर दिया। यूरोपीय महाशक्तियों ने एशिया , अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका के प्राकृतिक संसाधनों का लम्बे समय तक निर्ममता पूर्वक विदोहन किया और लगभग समस्त भू-भाग को कंगाल बना दिया।इसके विपरीत मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने वन प्रस्थान से लेकर लंकेश पर विजय प्राप्त करने तक एक आदर्श चरित्र प्रस्तुत किया और अयोध्या को एक आदर्श राज्य के रूप में प्रस्तुत किया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम चाहते तो लंका में कठपुतली सरकार स्थापित कर लंका के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अयोध्या को सजाने संवारने के लिए अथवा अयोध्या की अनुषंगी अर्थव्यवस्था के रूप में कर सकते थे। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के लंका के प्रति मर्यादित आचरण का बोध वर्तमान दौर के शक्तिशाली शासकों को जाय तो शांति पूर्ण और सह अस्तित्व की भावना से परिपूर्ण दुनिया का निर्माण हो सकता हैं। परन्तु इतिहास गवाह है कि -1950 के दशक से आरंभ शीत युद्ध के दौरान विश्व की दो महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ दुनिया के तमाम देशों में अपनी-अपनी कठपुतली सरकार बनाई। विश्वशांति और विश्वबंधुत्व की दिशा में मर्यादा पुरुषोत्तम राम का लंका के साथ किया गया आदर्श व्यवहार विश्व के शक्तिशाली देशों लिए अनुसरणीय हो सकता है। आज विश्व की लगभग एक तिहाई सरहदो पर तनाव और युद्ध जैसा वातावरण बना हुआ है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा लंका पर विजय के उपरान्त प्रस्तुत आदर्श इन सरहदों पर विद्यमान तनाव को कम करने में सहायक हो सकता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के इस आदर्श व्यवहार से सीख लेते हुए प्रत्येक शक्तिशाली देश को कमजोर देश की सम्प्रभुता और सरहद का यथोचित सम्मान करना चाहिए। मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा लंका के प्रति अपनाई गई आदर्श नीति को अनिवार्य रूप से हर देश की विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन की विषयवस्तु के रूप शामिल किया जाना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बहुचर्चित पंचशील के सिद्धांत के अनुसार हर देश को एक दूसरे देश की सम्प्रभुता एकता और अखंडता का सम्मान करना चाहिए। प्रकारांतर से पंचशील के सिद्धांत का बीजारोपण मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने लंका विजय के उपरांत विभिषण को लंका का राजा बनाकर कर दिया था। आधुनिक काल में यूरोपीय महाशक्तियों के अभ्युदय के उपरांत विश्व के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा तथा विश्व के बाजारों तक अपनी पहुंच कायम करने के लिए यूरोपीय महाशक्तियों में हिंसक प्रतिस्पर्धा होने लगी। यूरोपीय महाशक्तियों में निरंतर बढ़ती हिंसक प्रतिस्पर्धा की परिणति अंततः प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में हुई। इन विश्व युद्धों से सबक लेते हुए विश्व के अमन पसंद नेताओं ने भविष्य में युद्धों को रोकने तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थाई शांति के लिए अनगिनत प्रयास किए। इन अनगिनत प्रयासों के बावजूद आज रुस और यूक्रेन के मध्य चल रहे युद्ध तथा हाल ही में इज़रायल - फिलिस्तीन - हमास के मध्य चल रहे युद्ध से अंतरराष्ट्रीय शांति पर ख़तरे के बादल मंडराने लगे हैं। तृतीय विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी दुनिया में स्थाई अंतरराष्ट्रीय शांति लाने की दिशा में मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा स्थापित लंका नीति सर्वाधिक कारगर उपाय हो सकती हैं। आज विश्व की अधिकांश सरहदों पर तनाव व्याप्त है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा स्थापित लंका नीति सरहदीय तनाव को समाप्त करने के साथ -साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों में सहायक हो सकती हैं। प्रत्यक्ष और सामरिक शक्ति पर आधारित साम्राज्यवाद का दौर तो अवश्य समाप्त हो गया है। परन्तु दौलत, विज्ञान और तकनीकी के आधार पर आज साम्राज्यवादी शोषण जारी है। इस साम्राज्यवादी प्रवृत्ति और शोषण से निजात दिलाने में मर्यादा पुरुषोत्तम राम की लंका नीति सर्वाधिक कारगर उपाय हो सकती है।

लेखक: मनोज कुमार सिंह 
जिला अध्यक्ष मऊ - उत्तर प्रदेश शिक्षक कांग्रेस 
लेखक/ साहित्यकार/उप-सम्पादक कर्मश्री मासिक पत्रिका

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