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आजमगढ़ 10 जनवरी-- पशुपालन भारतवर्ष की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अनवरत विकास को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। प्राचीनकाल में पशुपालन ही आर्थिक विकास का परिचायक रहा। जिस व्यक्ति/परिवार के पास जितने अधिक पशु रहते थे, वह उतना आर्थिक सम्पन्न व्यक्ति माना जाता था। पशुओं से दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ खेती करने के लिए बैल भी होते थे। दुग्ध उत्पादन मानव जीवन के विकास की सीढ़ी रही है। मनुष्य अपने विकास के काल में जब संगठित होकर समूह में रहने लगा तो सर्वप्रथम पशुपालन का कार्य किया, उसके बाद खेती का कार्य किया था। दुग्ध उत्पादन का कार्य प्रागैतिहासिक काल से आज तक अनवरत चला आ रहा है और इस धरती पर जब तक मानव रहेगा तब तक उसके आर्थिक विकास का सम्बल बना रहेगा।
भारतवर्ष विश्व में सर्वाधित दुग्ध उत्पादन करने वाला देश है और भारतवर्ष में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश है। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में दुग्ध उत्पादन उनके आर्थिक विकास में अनवरत सहभागी बना हुआ है। इसके साथ ही कृषि कार्यों कृषि आधारित ढांचा को सुदृढ़ करने में लाभप्रद रहा है। आज देश और प्रदेश में दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई जनसंख्या एवं घटती हुई कृषि योग्य भूमि के कारण दुग्ध उत्पादन ही ऐसा व्यवसाय है जो ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों, निर्बलों, भूमिहीनों, मजदूरों, बेरोजगारों के लिए अतिरिक्त आय का लाभप्रद साधन है। प्रदेश सरकार दुग्ध विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत अनेकों कार्यक्रम चलाते हुए दुग्ध उत्पादकों की सहायता कर रही है। दुग्ध उत्पादकों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए प्रदेश सरकार सहकारी दुग्ध समितियों के गठन तथा उन्हें दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में प्रशिक्षण, दुग्ध उपार्जन परिवहन सुविधा, प्रसंस्करण, तरल दुग्ध व दुग्ध उत्पादों का उत्पादन, विपणन अर्थात प्री प्रोडक्शन टू पोस्ट मार्केटिंग की व्यवस्था, सुविधा दे रही है। सरकार की इस व्यवस्था से प्रदेश में दुग्ध उत्पादन बढ़ा है।
दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए रेग्यूलेटरी कार्यकलाप किये जाते हैं, जिसके अन्तर्गत विभिन्न नियम, अधिनियम लागू कर सहकारी दुग्ध समितियों का निबन्धन, आॅडिट आदि कार्य करते हुए उन्हें पारदर्शी बनाया गया है। इसके साथ ही ग्रामीण अंचलों के कृषकों दुग्ध पशुपालकों को सहकारी दुग्ध समितियों का सदस्य बनाकर, उन्हें प्रशिक्षित कर दुग्ध व्यवसाय की ओर अग्रसर किया जाता है। दुग्ध उत्पादकों को दुग्ध की गुणवत्ता के आधार पर समुचित मूल्य दिलाकर, बिचैलियों के शोषण से मुक्त कराते हुए उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति को सुदृढ़ किया जाता है।
ग्रामीण अंचल के दुग्ध उत्पादकों को तकनीकी निवेश सुविधाएं जैसे पशु स्वास्थ्य कार्यक्रम, टीकाकरण, डिवार्मिंग, थनैना रोग नियंत्रण एवं तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराकर प्रोत्साहित किया जाता है। प्रदेश के नगरीय उपभोक्ताओं को प्रतिदिन उच्च गुणवत्तायुक्त दूध व दुग्ध उत्पाद उपलब्ध कराया जाता है। दुग्ध उपार्जन, प्रसंस्करण एवं विपणन का क्रियान्वयन दुग्ध सहकारी समितियों के माध्यम से कराया जाता है।
प्रदेश सरकार दुधारू पशुओं के पालन हेतु उचित मूल्य पर पशुओं के क्रय कराने में सहयोग करती है तथा नस्ल सुधार कर अधिक दूध देने वाली नस्लों के पशुओं के उत्पन्न करने हेतु पशु चिकित्सालयों में कार्यक्रम संचालित किये गये हैं। पशुपालकों को उनके दुधारू पशुओं हेतु उचित मूल्य पर संतुलित पशु आहार उपलब्ध कराने के लिए पशु आहार निर्माणशालाएं भी क्रियाशील की गई हैं। प्रदेश सरकार दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित कर रही है, जिससे प्रदेश में दुग्ध उत्पादन बढ़ा है और कृषकों, दुधारू पशुपालकों की आय में वृद्धि हो रही है।