आज़मगढ़।
रिपोर्ट: वीर सिंह
प्रधानी की कुर्सी पर सियासी जंग, आज़मगढ़ में खून की होली—एक हत्या ने खोले कई राज़।
आज़मगढ़, 05 अप्रैल 2025 – जी हां, राजनीति सिर्फ़ भाषणों और नारों की दुनिया नहीं, यहां लाठियां भी बोलती हैं और गमछे भी कहानी कह जाते हैं। जीयनपुर थाना क्षेत्र का भरौली गांव इस समय खबरों में है, लेकिन वजह बेहद खौफनाक और ‘अलोकतांत्रिक’ है—32 वर्षीय अश्वनी चौहान की निर्मम हत्या।ग्रामीणों की मानें तो अश्वनी चौहान एक सीधा-सादा युवक था, लेकिन उसके सपने थोड़े ‘बड़े’ थे—प्रधानी का चुनाव लड़ने के। और यही सपना शायद उसकी जान का दुश्मन बन गया। 28 मार्च को वह गांव के ही मैकु उर्फ रामचंद्र यादव और गौरव सिंह के साथ दावत खाने गया। लेकिन लौटते समय न दावत का स्वाद बचा, न दोस्ती की मिठास—बचा तो सिर्फ़ लाश का सन्नाटा।
30 मार्च को मां शिवकुमारी ने थाने में शिकायत दी। दर्द से कांपती आवाज़ में उन्होंने बताया कि उनके बेटे को दावत के नाम पर धोखा दिया गया। केस नंबर 124/2025 दर्ज हुआ, और पुलिस ने भी अपनी नई किताब BNS के कुछ नए पन्ने पलटे—धारा 103(1), फिर 3(5)/61(2)—जैसे हत्या कोई कानूनी गिटार हो, जिस पर अलग-अलग धुनें बजाई जा रही हों।5 अप्रैल की सुबह 7:30 बजे पुलिस ने खतीबपुर निवासी 19 वर्षीय शिवम यादव को चुनगपार मोड़ से धर दबोचा। उसकी निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल हुई लाठी, गमछा, और मोटरसाइकिल बरामद हुई। लाठी शायद सिर्फ़ मारने का नहीं, सत्ता का भी प्रतीक बन चुकी है। और गमछा? शायद ये वही है जिससे मुंह बांधा जाता है—सच का, इंसाफ का, और कभी-कभी लोकतंत्र का भी।
शिवम ने बताया कि मुख्य साजिशकर्ता रामचंद्र उर्फ मैकु को डर था कि अश्वनी के चुनाव लड़ने से उसकी ‘ताजपोशी’ मुश्किल हो जाएगी। तो उसने गौरव सिंह और अपने कुछ नाटकीय साथियों के साथ मिलकर अश्वनी को रास्ते से हटाने की ठानी। दावत के बहाने बुलाया गया, और फिर सड़क किनारे नरहन गांव के पास... चुनावी खून बहाया गया।
पुलिस के मुताबिक, इस साजिश में कुल 12 लोग शामिल थे—कुछ के नाम पुराने अपराधों की किताबों में दर्ज हैं। हथियारों की सूची में लाठी, लोहे की रॉड और हाथ शामिल हैं। यानी लोकतंत्र अब इतने सशस्त्र हो चुका है कि वोट की जगह वॉर छिड़ चुकी है।
थानाध्यक्ष जितेंद्र बहादुर सिंह ने प्रेस को बताया, "यह एक सुनियोजित साजिश थी। बाकी अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी जारी है।" उनके साथ उपनिरीक्षक विश्वजीत पांडेय और कांस्टेबल राजेश कुमार जैसे ‘सह-कलाकार’ भी थे, जो इस रक्तरंजित स्क्रिप्ट में पुलिसिया पन्ना जोड़ रहे हैं। भरौली और आसपास के गांवों में दहशत है। लोग पूछ रहे हैं: क्या प्रधानी की कुर्सी इतनी भारी है कि उसे पाने के लिए लाशों का पुल बनाना जरूरी हो गया है? सत्ता की चाह में जब राजनीति पगला जाए, तो लाठी सिर्फ़ हड्डी नहीं, लोकतंत्र भी तोड़ती है।