आज़मगढ़।
रिपोर्ट: आदर्श श्रीवास्तव
जीयनपुर कोतवाली में सब कुछ सामान्य है, बस अपराध नियंत्रण नाम की चीज लापता है।
आज़मगढ़: जीयनपुर कोतवाली क्षेत्र के नरहन में हुई हत्या को कई दिन बीत गए, लेकिन पुलिस अभी भी 'सोच रही है' कि आखिर ये माजरा क्या है। शुरुआत में इसे एक्सीडेंट बताया गया – मानो किसी फिल्म की स्क्रिप्ट बदल गई हो। पोस्टमार्टम और परिजनों के आक्रोश के बाद जब पुलिस को याद आया कि 'घाव तो चाकू के हैं, टक्कर से नहीं आते', तब जाकर हत्या मान ली गई। हत्यारा कौन है? क्यों मारा? किसने प्लान किया? – इन सवालों पर पुलिस का जवाब है: "जांच जारी है", जो यूपी पुलिस की पुरानी स्लोगन लाइन बन चुकी है।
और अगर कोतवाल साहब से इन सवालों पर कुछ पूछ लो, तो साहब का बीपी हाई हो जाता है। बोलने लगते हैं जैसे हम ही अपराधी हों और वो पूछताछ कर रहे हों।
अब बात करते हैं उन दो लोगों की जिन्हें ‘शक के आधार पर’ (या शायद टाइम पास के लिए) पांच दिन से थाने में बंद किया गया है। ना कोर्ट में पेशी, ना चालान, ना ही कोई ठोस सबूत—बस थाने की चारदीवारी और पुलिस की चुप्पी।
सगड़ी के भरौली गांव के अश्वनी कुमार चौहान—प्रॉपर्टी डीलर, जनसेवक बनने की इच्छा रखने वाला एक मेहनती युवक, जो अब इस दुनिया में नहीं है।
हर रोज़ की तरह घर निकले थे, लेकिन इस बार वापस नहीं लौटे। शव झाड़ियों में पड़ा मिला, पास में लाठी और धारदार हथियार से हमला—मौत का पैटर्न साफ़ था, लेकिन पुलिस को तब तक कुछ ‘साफ़’ नहीं दिखा जब तक जनता ने आँखें नहीं दिखाई।
परिवार पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा है—माँ शिवकुमारी और पत्नी रंभा की आंखों से सवाल बह रहे हैं—लेकिन जवाब कहीं नहीं है।
क्या अश्वनी की हत्या चुनावी रंजिश का नतीजा थी?
या फिर प्रॉपर्टी के धंधे में किसी को उनका बढ़ता कद रास नहीं आया?
पुलिस कहती है—"हम जांच कर रहे हैं।"
जनता कहती है—"आप आराम कर रहे हैं!"
जीयनपुर कोतवाली में अपराधियों पर शिकंजा नहीं, सिर्फ फाइलों में पन्ने पलटे जा रहे हैं। कोतवाल साहब, जनता जवाब चाहती है—ब्लड प्रेशर नहीं।