आज़मगढ़।
रिपोर्ट: वीर सिंह
आज़मगढ़। हरैया ब्लॉक प्रमुख पद की सियासी जंग आखिरकार अपने निर्णायक पड़ाव पर पहुंच गई है। महीनों से चल रही कानूनी और राजनीतिक रस्साकशी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश जारी किया है — “अब सक्षम प्राधिकारी परिणाम घोषित कर सकता है।” इस एक लाइन ने हरैया की सियासत में जैसे नया मोड़ ला दिया है।
मामला संदीप पटेल बनाम वंदना व अन्य से जुड़ा था। याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति नोंगमीकापम कोटिस्वर सिंह की खंडपीठ ने 6 नवंबर 2025 को सुनवाई पूरी करते हुए यह आदेश सुनाया। कोर्ट ने साफ किया कि परिणाम घोषित करने का अधिकार अब सक्षम अधिकारी के पास है। साथ ही, सभी लंबित आवेदनों का निपटारा कर दिया गया।
राज्य सरकार का पक्ष:
सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि 4 अक्टूबर 2025 को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ था। कुल 54 वोट पड़े, जिनमें 2 अमान्य घोषित हुए। शेष 52 वैध मत अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में थे। लेकिन पंचायत राज अधिनियम की धारा 15(11) के अनुसार प्रस्ताव पारित होने के लिए कुल निर्वाचित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होती है। यह बहुमत पूरा न होने से परिणाम की औपचारिक घोषणा रोक दी गई थी।
अब क्या होगा आगे?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब परिणाम घोषित करने का रास्ता साफ है। बॉल अब पूरी तरह स्थानीय प्रशासन और सक्षम प्राधिकारी के पाले में है।
हरैया में माहौल गर्म है—संदीप पटेल ने अपनी कुर्सी सुरक्षित मानते हुए समर्थकों के साथ जश्न मनाया, मिठाइयाँ बँटीं, और पटाखों से आसमान गूंज उठा। लेकिन अभी आधिकारिक घोषणा बाकी है, जो इस राजनीतिक कहानी का असली क्लाइमेक्स तय करेगी।
वहीं विपक्ष ने संयमित रुख अपनाते हुए कहा, “हम अदालत के आदेश का सम्मान करते हैं, जो भी निर्णय आएगा, स्वीकार होगा।”
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश हरैया की राजनीति को सिर्फ़ कानूनी स्पष्टता नहीं देता, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि लोकतंत्र में आख़िरी फैसला न अदालत का होता है, न भीड़ का — बल्कि कानून और प्रक्रिया का होता है।
“हरैया की गद्दी पर फिलहाल जश्न की गूंज है, लेकिन आंखें अब भी टिकी हैं उस एक ऐलान पर... जो तय करेगा, कुर्सी किसकी, कहानी किसकी!”