आज़मगढ़।
रिपोर्ट: वीर सिंह
डीआईजी सुभाष चंद्र दुबे रहे मुख्य अतिथि।
आज़मगढ़: सगड़ी तहसील के श्री रामानंद सरस्वती पुस्तकालय जोकहरा में आयोजित "लोक विधा के समक्ष चुनौतियां एवं जांघिया लोकनृत्य" विषयक संगोष्ठी के तहत जांघिया लोक नृत्य प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन किया गया, जिसमें बतौर मुख्य अतिथि जनपद के डीआईजी सुभाष चंद्र दुबे रहे। इस दौरान उन्होंने कलाकारों की हौसला अफजाई करते हुए उनके उज्जवल भविष्य की।
कलाकारों द्वारा जांघिया नृत्य की शानदार प्रस्तुति ने समां बांध दिया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कला का यह आलम उफान पर था। जिसमें कलाकारों ने इन विधाओं के बारे में जाना।
आपको बतादें- भौतिकवादी जीवन, आधुनिकीकरण का अंधानुकरण के प्रभाव से लोक सांस्कृतिक परंपराओं से कटाव या दुराव के कारण विलुप्त होने के कगार पर है।
जांघिया नृत्य में भाषा से ज्यादा अहम नृत्य शैली हैं जिसमें अतरंग अभिव्यक्तियां प्रकट होती है। नर्तक के कमर में एक चौड़ी पट्टी जिस पर ढेर सारी घंटिया लगी होती है।
नृत्य के नर्तक कमर को आगे पीछे लचकाकर थाप और वाद्य यंत्रों के साथ संगतपूर्ण नृत्य प्रस्तुत करता है।
नृत्य के नर्तक कमर को आगे पीछे लचकाकर थाप और वाद्य यंत्रों के साथ संगतपूर्ण नृत्य प्रस्तुत करता है।
जांघिया नृत्य कला की बेहतरीन प्रस्तुति करने के लिए कलाकारों को संस्था की निदेशिका हिना देसाई व समाजसेवी रेनू गोस्वामी ने लोक नृत्य जांघिया कला के कलाकारों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया। श्री रामननंद सरस्वती पुस्तकालय की निदेशिका हिना देसाई ने आए हुए अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि- वर्तमान में इसकी जगह शोर-शराबे वाली संगीत ने ले ली है। इसलिए हमें अपनी संस्कृति को बचाना चाहिए।
समाजसेवी रेनू गोस्वामी ने कहा कि- धन प्रधान समाज में ये लोक कलाकार पारंपरिक संदर्भों में अपनी संस्कृति से विमुख होने के लिए मजबूर हैं। कार्यक्रम के माध्यम से इस पांरपरिक लोक नृत्य के महत्व को लोगों के सामने उजागर करने का प्रयास किया गया है।