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लेख: आज भारत के प्रथम राष्ट्रपति और स्वतंत्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप सिंह का 136वां जन्मदिन है। वे एक दिस. 1886 को पैदा हुए थे। वे रियासत मुरसान हाथरस के राजा हरनारायण सिंह के दत्तक पुत्र थे और जाट समुदाय से संबंध रखते थे। उनका निधन 26 अप्रैल 1979 को हुआ था। उनकी पत्नी बलबीर कौर जींद के की राजकुमारी थीं।
उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बी ए. की परीक्षा पास की थी। वे 1906 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए थे। उन्होंने 1911 में आर्य समाज सभा को 80 एकड़ जमीन दान में दे दी थी और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को 3 एकड़ जमीन दान में दी थी।
1915 में भारत को आजाद कराने के लिए उन्होंने यूरोप और काबुल की यात्राएं की थी। अपने अखबार "संसार संघ" के लिए प्रथम विश्व युद्ध से ही सक्रिय थे ताकि देश और दुनिया में आजादी का प्रचार प्रसार किया जा सके। दिसंबर 1915 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने काबुल, अफगानिस्तान में भारत की पहली निर्वासित अस्थाई और पहली स्वतंत्र सरकार बनाई थी जिसमें वे राष्ट्रपति बने और बरकतुल्लाह खान को प्रधानमंत्री बनाया गया और ओबेब्दुल्लाह खान को वित्त मंत्री बनाया गया।
वे अपने आजादी और संघर्ष के पत्र "संसार संघ" को हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में निकालते ही रहे। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें प्रथम श्रेणी का घुमक्कड़ राष्ट्रपति और स्वतंत्रता सेनानी बताया था जिसने पृथ्वी के कई बार परिक्रमा की थी। वे अंग्रेजों की गुलामी के कट्टर दुश्मन थे। वे अपनी सारी जिंदगी देश की आजादी के लिए लड़ते रहे। वे आजादी के अद्भुत दीवाने थे। वे हिंदू मुस्लिम एकता के महान चितेरे थे। वे सांप्रदायिकता के घनघोर विरोधी इंसान थे।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह अपने जीवन के 31 साल विदेशों में रहे और 1946 में भारत लौटे।उन्होंने 25 देशों की यात्राएं कीं। राजा महेंद्र प्रताप सिंह एक महान क्रांतिकारी, आजादी के दीवाने और अद्भुत किस्म के महादानी थे। उन्होंने अपनी संपत्ति का 70% शिक्षण संस्थानों को दान कर दिया था। वे एक महान शिक्षक, शिक्षामित्र, समाज सुधारक, महानदानी और अद्भुत स्वतंत्रता सेनानी और सशस्त्र क्रांति के हामी थे।
हमारे वर्तमान शासकों को उनमें एक जाट नजर आता है, मगर उनकी महान विरासत को हमारा शासक वर्ग चाहे कांग्रेस हो, चाहे बीजेपी हो, उन्हें याद करने को तैयार नहीं है। बस उनके नाम पर जाट समुदाय से वोट देना चाहते हैं। हमारे शासकों और सरकारों को उनकी विरासत से कुछ लेना देना नहीं है उनके कार्यक्रमों से, उनकी स्वतंत्रता की इच्छा से, किसान मजदूरों का कल्याण करने से, समाजवाद को स्थापित करने में उनकी कोई रुचि नहीं है।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह एक अंतरराष्ट्रीय क्रांतिकारी, राष्ट्रपति और राष्ट्रीय हीरो थे। वे अंग्रेजों का समूल विनाश चाहते थे। वे अंग्रेजों से हिंदुस्तान से अंग्रेजों को निकालने के लिए 1919 में रूस में जाकर महान क्रांतिकारी लेनिन से भी मिले और अपने देश की आजादी की खातिर और अपने सशस्त्र संघर्ष को जारी रखने के लिए उन्होंने अफगानिस्तान, टर्की, मिश्र और जर्मनी के राजाओं से मुलाकात की।
उन्होंने अपने आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए "प्रेम धर्म" चलाया और लोगों से मांग की कि वे प्रेम धर्म का पालन करें, उसके सहयोगी बनें। उनका दृढ़ विश्वास था कि देश और दुनिया में प्रेम का साम्राज्य कायम करके ही इस देश और दुनिया को शोषण, अन्याय और गुलामी से बचाया जा सकता है।
1857 के प्रथम सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम के बाद, उन्होंने 1915 में भारत में अंग्रेजों के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह शुरू किया था। वे अंग्रेजों के समूल विनाश की नीतियों पर चल रहे थे। वे अपने को एक "जनसेवक" कहा करते थे। अंग्रेज उनसे इस कदर खफा थे कि अंग्रेजों ने उनका सिर काट कर लाने पर इनाम रखा था। अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में, उन्होंने विदेशों की मदद ली। जर्मन के सम्राट कैसर ने उन्हें "ऑर्डर ऑफ द रैड ईगल" यानी "लाल बाज" की उपाधि से नवाजा था।
अपनी सरकार बनाकर उन्होंने अपने संघर्ष की योजना को जमीन पर उतारा और अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए भारत में क्रांति और संघर्ष की शुरुआत की। उन्होंने जर्मन, ऑस्ट्रियाई, बल्गेरियाई, तुर्की और रूसी समाजवादियों को लेकर एक "अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सेना" बनाने का आह्वान किया। वे भारत में समाजवादी व्यवस्था कायम करना चाहते थे और इसी के लिए उन्होंने अपने जीवन के 31 वर्ष विदेशों में गुजारे।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह 1946 में भारत वापस आए और 1957 के संसद चुनाव में मथुरा संसदीय क्षेत्र से आजाद उम्मीदवार के रूप में सांसद निर्वाचित हुए। इस चुनाव में अटल बिहारी वाजपेई की जमानत हो गई थी। उन्होंने दुनिया में प्यार, मोहब्बत और आजादी कायम करने के लिए "प्रेम धर्म" की स्थापना की थी। उन्होंने दलितों के घरों में भोजन किया, सबको शिक्षा की बात की और जात पांत की दीवारें तोड़ीं।
इस प्रकार हम देखते हैं राजा महेंद्र प्रताप सिंह एक महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी समाजवादी, "प्रेम धर्म" के संस्थापक और पूरी दुनिया में "अंतर्राष्ट्रीय क्रांतिकारी समाजवादी सेना" बनाने का आह्वान कर रहे थे और अपने इस मिशन को पूरा करने में उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी।
भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी और पहले राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप सिंह को, हम उनके अविराम संघर्ष को, भारत में समाजवादी व्यवस्था कायम करने की सोच और मानसिकता को, उनके बलिदान और त्याग को, उनके दान देने की जहनियत को और भारत को किसी भी कीमत पर आजाद कराने की मानसिकता को और सोच को, सलाम करते हैं। आज भारत के किसानों, मजदूरों, तमाम मेहनतकशों, समाजवादियों, वामपंथियों, प्रगतिशील और जनवादी ताकतों को राजा महेंद्र प्रताप सिंह के जीवन से बहुत कुछ सीखने की और बुनियादी सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं को हल करके समाजवादी समाज कायम करने की महती जरूरत है।
लेखक: मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता