अंतरिक्ष में भारत के बुलंद हौसले की उड़ान है चंद्रयान-3


लेख।

लेख: सफलता और असफलता में एक समतल रेखा होती है जिसको परिश्रम और साहस से मिटाया जा सकता है ठीक वही हुआ भारत के चंद्रयान मिशन के साथ 2019 में जब चंद्रयान दो का प्रोपल्शन मॉड्यूल से बाहर उठकर चंद्रमा की कक्षा में पहुंचना और लैंडर का सुरक्षित चंद्रमा की सतह पर न पहुंच पाना असफलता का प्रमुख उद्बोधक नहीं था परंतु हमारे वैज्ञानिकों ने उसे मिशन को रोक नहीं अपितु उसमें हुई गलतियों की बारीकियां से सीख कर चंद्रयान-3 के कार्यक्रम में जी जान लगाकर जुट गये। चंद्रयान-3 के मिशन में भारत अपने प्रोपल्शन लैंडर और रोवर तीनों मॉड्यूल में सफल रहा कल जब चंद्रयान चंद्रमा की सतह पर 6:04 पर पहुंचा तो वह दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का एकमात्र लैंडर था जिसने न केवल भारत का बल्कि दुनिया को आईना दिखाया की कम लागत और बजट में अपने मेहनत और दिमाग की क्षमता से कैसे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारकर असंभव को संभव किया जा सकता है। भारत का यह मिशन अतुलनीय और सराहनीय इसलिए भी हो जाता है किशन 1962 में पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं विक्रम साराभाई के बदौलत शुरू हुआ इसरो आज दुनिया में अपने बुलंद हौसले और अकल्पनीय शक्ति से पहचाना जाने लगा है,पहले इसरो को भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (इन्कोस्पार) के नाम से जाना जाता था, जिसे डॉ. विक्रम ए. साराभाई की दूरदर्शिता पर 1962 में भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। इसरो का गठन 15 अगस्त, 1969 को किया गया था तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए विस्तारित भूमिका के साथ इन्कोस्पार की जगह ली।ISRO की ऑफिश‍ियल वेबसाइट के अनुसार, 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भारत की अंतरिक्ष एजेंसी है। इस संगठन में भारत और मानव जाति के लिए बाह्य अंतरिक्ष के लाभों को प्राप्त करने के लिए विज्ञान, अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी शामिल हैं। इसरो अंतरिक्ष विभाग (अं.वि.), भारत सरकार का एक प्रमुख घटक है। विभाग भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को मुख्य रूप से इसरो के तहत विभिन्न केंद्रों या इकाइयों के माध्यम से निष्पादित करता है। इसरो/अं.वि. का मुख्य उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रीय आवश्यकताओं के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास और अनुप्रयोग है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, इसरो ने संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम संबंधी सेवाओं, संसाधन मॉनीटरन और प्रबंधन; अंतरिक्ष आधारित नौसंचालन सेवाओं के लिए प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियों की स्थापना की है। इसरो ने उपग्रहों को अपेक्षित कक्षाओं में स्थापित करने के लिए उपग्रह प्रक्षेपण यान, पी.एस.एल.वी. और जी.एस.एल.वी. विकसित किए हैं।

अपनी तकनीकी प्रगति के साथ, इसरो देश में विज्ञान और विज्ञान संबंधी शिक्षा में योगदान देता है। अंतरिक्ष विभाग के तत्वावधान में सामान्य प्रकार्य में सुदूर संवेदन, खगोल विज्ञान और तारा भौतिकी, वायुमंडलीय विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान के लिए विभिन्न समर्पित अनुसंधान केंद्र और स्वायत्त संस्थान हैं। इसरो के स्वयं के चंद्र और अंतरग्रहीय मिशनों के साथ-साथ अन्य वैज्ञानिक परियोजनाएं वैज्ञानिक समुदाय को बहुमूल्य आंकडे प्रदान करने के अलावा विज्ञान शिक्षा को प्रोत्साहित और बढ़ावा देते हैं, जो परिणामस्वरूप विज्ञान को बढ़ावा देता है। इसरो का मुख्यालय बेंगलूरु में स्थित है। इसकी गतिविधियाँ विभिन्न केंद्रों और इकाइयों में फैली हुई हैं। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वी.एस.एस.सी.), तिरुवनंतपुरम में प्रमोचक रॉकेट का निर्माण किया जाता है; यू. आर. राव अंतरिक्ष केंद्र (यू.आर.एस.सी.), बेंगलूरु में उपग्रहों की डिजाइन एवं विकास किया जाता है; सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एस.डी.एस.सी.), श्रीहरिकोटा में उपग्रहों एवं प्रमोचक रॉकेटों का समेकन तथा प्रमोचन किया जाता है; द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (एल.पी.एस.सी.), वलियमाला एवं बेंगलूरु में क्रायोजेनिक चरण के साथ द्रव चरणों का विकास किया जाता है; अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (सैक), अहमदाबाद में संचार एवं सुदूर संवेदन उपग्रहों के संवेदकों तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग से संबंधित पहलुओं पर कार्य किया जाता है; राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एन.आर.एस.सी.), हैदराबाद में सुदूर संवेदन आँकड़ों का अभिग्रहण, प्रसंस्करण तथा प्रसारण किया जाता है। डॉ. विक्रम साराभाई ने 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) बनाई। डॉ. साराभाई के नेतृत्व में INCOSPAR ने तिरुवनंतपुरम में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) की स्थापना की।
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने, रॉकेट इंजीनियरों की शुरुआती टीम में से थे जिन्होंने INCOSPAR की स्थापना की थी। बाद में TERLS का नाम विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र रखा गया।
पहला रॉकेट 21 नवंबर 1963 को यहीं से लॉन्च किया गया था। इसने भारतीय स्पेस प्रोग्राम की ऐतिहासिक शुरुआत की। INCOSPAR 15 अगस्त 1969 को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) बन गया। INCOSPAR के गठन के ठीक एक साल बाद, 1963 में, भारत ने अपना पहला रॉकेट अंतरिक्ष में लॉन्च किया था। ऊपरी वायुमंडल की जांच के लिए बनाए गए साउंडिंग रॉकेट को केरल के थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन से लॉन्च किया गया था। इसे अब विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के रूप में जाना जाता है। डॉ. कलाम ने बताया था कि कैसे तैयारी शुरू होने से पहले INCOSPAR को एक स्थानीय चर्च से जमीन लेनी पड़ी और ग्रामीणों को स्थानांतरित करना पड़ा। फिर, वे रॉकेट पार्ट्स को साइकिल के माध्यम से लॉन्च पैड तक ले जा रहे थे। 21 नवंबर, 1963 को उन्होंने डॉ. होमी भाभा जैसे एलीट साइंस्टिस्‍ट्स की मौजूदगी में रॉकेट लॉन्च किया।सैटलाइट लॉन्च वीइकल-3 (SLV-3) भारत का पहला एक्सपेरिमेंटल सैटलाइट लॉन्च वीइकल था। यह 40 किलोग्राम श्रेणी के पेलोड को निम्न पृथ्वी ऑर्बिट (LEO) में रखने में सक्षम था। इसे 18 जुलाई 1980 को लॉन्च किया गया था। SLV-3 ने रोहिणी को ऑर्बिट में स्थापित किया था। इस तरह भारत अंतरिक्ष-प्रगतिशील देशों के एक विशेष क्लब का छठा सदस्य बन गया। रोहिणी ISRO द्वारा लॉन्च सैटलाइट की एक सीरीज थी। इस सीरीज में चार सैटलाइट शामिल थे। उनमें से तीन ने सफलतापूर्वक ऑर्बिट में प्रवेश किया।आर्यभट्ट भारत का पहला उपग्रह था जिसे 19 अप्रैल 1975 को कॉस्मोस-3 एम लॉन्च वीइकल से लॉन्च किया गया था। प्रसिद्ध भारतीय खगोलशास्त्री के नाम पर इसका नाम आर्यभट्ट रखा गया। इसे ISRO ने बनाया था और सोवियत संघ ने लॉन्च किया था।चंद्रयान-3 ने चंद्रमा पर सफल लैंडिंग कर इतिहास रच दिया। चंद्रयान 3 ने चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर सुरक्षित लैंडिंग की। इसके बाद देश में लोग खुशी से झूम उठे। इसरो का कंट्रोल सेंटर तालियों से गूंज उठा। इस मौके पर इसरो चीफ के चेहरे की खुशी देखते ही बन रही थी। चंद्रयान-3 की सेफ लैंडिंग पर इसरो चीफ ने साइंटिस्टो, प्रोजेक्ट डायरेक्ट और मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों को बधाई दी। चंद्रयान की सेफ लैंडिंग के बाद मिशन के प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों ने अपने अनुभव शेयर किए। चंद्रयान मिशन की सफलता के बाद पीएम मोदी ने सोमनाथ को फोन किया था। इसरो चीफ ने इस बात की जानकारी दी। इसरो चीफ ने कहा कि देशवासियों को बधाई दी। सोमनाथ ने कहा कि हमनें चंद्रयान-1 से सफर शुरू किया था। यह अब चंद्रयान-3 तक पहुंच चुका है। उन्होंने सभी के समर्थन के लिए धन्यवाद दिया। इसरो चीफ ने अपने टीम को पहले बोलने का मौका दिया। मिशन चंद्रयान से जुड़े साइंटिस्ट जब इस बारे में बोल रहे थे तब सोमनाथ पीछे खड़े मुस्कुरा रहे थे। सभी जानते हैं कि भारत के चंद्रयान-3 मिशन के कुछ समय बाद शुरू किया गया लूना-25 मिशन, जो रूस के द्वारा शुरू किया गया था, वह तकनीकी खामियों के चलते असफल हो चुका था. भारत का भी पिछला चंद्रयान -2 मिशन असफल हो चुका है, इसलिए इस बार हर भारतवासी यही शुभ कामना कर रहा था कि चंद्रयान 3 अपने मिशन में कामयाब हो और सॉफ्ट लैंडिंग करके चंद्रमा की सतह पर भारत का परचम लहराए.
ज्योतिष के अनुसार देखें तो स्पष्ट रूप से एक बात कही जा सकती थी कि चंद्रयान के चंद्रमा की सतह पर उतरने में कुछ परेशानियां सामने आने वाली हैं और यह मिशन अत्यंत जटिल और कठिन परिस्थितियों से होकर गुजरने वाला था. विशेष रूप से लैंडिंग से पूर्व का समय बहुत ज्यादा परेशानीजनक होना था लेकिन सूर्य और बुध का जो बुधादित्य योग है, वह भारतीय वैज्ञानिकों की तकनीकी सूझबूझ, कर्मठता और कार्य कुशलता की बदौलत इस कठिन समय में से भी एक चुनौती के रूप में इस स्थिति को संभालते हुए चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-3 को उतारने में सफल हो सके. वैसे भी प्रत्येक भारतवासी यही चाहता है.
यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने चंद्रयान-3 की सफलता के लिए इसरो को बधाई दी है.
नासा के प्रशासक बिल नेल्सन ने एक ट्वीट में कहा, "चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के लिए इसरो को बधाई. चांद पर सफलतापूर्वक सॉफ़्ट लैंडिग करनेवाला चौथा देश बनने के लिए भारत को बधाई. इस मिशन में आपका सहयोगी बनकर हमें बेहद खुशी है."
नासा की ये प्रतिक्रिया इसरो के एक ट्वीट पर आई है.
इसरो की इस सफलता पर यरोपीयन स्पेस एजेंसी (ईएसए) ने भी बधाई दी है.
ईएसए के प्रमुख जोज़फ एशबाकर ने कहा, "अद्भुत, इसरो और भारत के सभी लोगों को बधाई. नई तकनीक को प्रदर्शित करने का शानदार तरीका और चांद पर भारत की सॉफ़्ट लैंडिंग. शानदार, मैं बहुत प्रभावित हूं."
उन्होंने इस मौके पर इस प्रक्रिया में सहयोग के लिए ईएसए ऑपरेशंस को भी बधाई दी और कहा कि एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय साझेदार एक शक्तिशाली साझेदार होता है.चंद्रयान-3 के मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग का प्रदर्शन करना, चंद्रमा पर रोवर के चलने का प्रदर्शन करना और इन-सीटू यानि चाँद की सतह पर ही वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना है। मिशन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, लैंडर में कई उन्नत प्रौद्योगिकियाँ मौजूद हैं जैसे कि लेजर और आरएफ-आधारित अल्टीमीटर, वेलोसीमीटर, प्रोपल्शन सिस्टम, आदि। ऐसी उन्नत तकनीकों को पृथ्वी की स्थितियों में सफलतापूर्वक प्रदर्शित करने के लिए, कई लैंडर विशेष परीक्षण, जैसे इंटीग्रेटेड कोल्ड टेस्ट, इंटीग्रेटेड हॉट टेस्ट और लैंडर लेग मैकेनिज्म प्रदर्शन परीक्षण की योजना बनाई गई है और इसे सफलतापूर्वक पूरा किया गया है।चंद्रयान-3 के माध्यम से, भारत का लक्ष्य अपनी तकनीकी कौशल, वैज्ञानिक क्षमताओं और अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करना है। यदि चंद्रयान-3 सफल होता है, तो यह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष समुदाय में भारत की स्थिति को और मजबूत करेगा। यह मिशन युवा पीढ़ी को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगा।”
भारत की युवा पीढ़ी जो वेद और विज्ञान की तकनीक तकनीकी से परिपूर्ण होकर सुसज्जित है उसे यह मालूम है कि अब उसका अगला लक्ष्य सूर्य और शुक्र ग्रहों पर है जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री जी ने कल अपने स्वागत अभिनंदन वाले भाषण में यह उद्घोषणा की अब हमारा अगला मिशन सूर्य पर होगा। यह भारत के बुलंद हौसलों की उड़ान है जिसे पूरी दुनिया अपने नंगी आंखों से सजते संवारते हुए देख रही है आने वाले मिशन में इसरो का गगनयान है जिसको भारतीय स्पेस एजेंसी ने प्रमुखता से लिया है और इसे सफल बनाने की कार्य योजना पूरे जोरों शोरों पर है ताकि अंतरिक्ष में भारत के दमखम को और एक सीधी मिले। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि भारत की वैज्ञानिक क्षमता अकल्पनीय है जो कम से कम बजट में बड़े से बड़े मिशन को अंजाम तक पहुंचाने में सक्षम है शायद इसी का नतीजा है की दुनिया के बहुत से विकसित देश आज भारत से आस लगाकर इस उम्मीद में बैठे हैं कि शायद भारत के सहारे ही उनका भी स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन फूले फले। अभिनंदन की इस सो फनी घड़ी में हर भारतीय वैज्ञानिक को प्रणाम क्योंकि उन्हें की वजह से आज राष्ट्र गौरवान्वित हुआ है।

लेखक: आलोक प्रताप सिंह
लेखक एवं चिंतक

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