लेखक– प्रोफेसर अखिलेश चन्द्र
शिक्षा संकाय
श्री गांधी पी जी कॉलेज मालटारी,आजमगढ़
होरी की उम्र 70 वर्ष की हो गई है।आज उसे 103 डिग्री का जड़ाय देकर तेज बुखार भी है।होरी ने अपने पुत्र
कतवारू को बुलाकर कहा - “मेरे जेब में एक सौ पचास रुपए हैं उसे ले लो बेटा!ज़रा वैध जी के यहां से जाकर मेरा हाल बताकर कोई दवा ले के आ।बुखार कैसे भी हो थोड़ा कम हो जाय तो मैं रिक्शा लेकर बाजार चला जाता।आज शाम तक किसी भी तरह 600 रुपए कमाना है ।”कतवारु ने कहा - “जी बाबू जी।”बाबू जी से बोलकर कतवारु दवा लेने जाते हुए मन में बुदबुदाने लगा।आज फिर दवा लेने भेज रहें हैं।मुझे काम पर देर हो जाती है और ठीकेदार डांटता है,पिछले हफ्ते पैसा भी काट लिया था और आज फिर…।होरी की कतवारू से हो रही बात को धनिया,होरी की पत्नी सुन रही थी,कतवारू के वैद्य के यहां जाने के बाद उसने होरी से कहा - “काहे रिक्शा ले के जाने की जिद कर रहे हों, तबियत जब पूरी ठीक हो जाएगी तब जाइएगा।अब ढेर सा आदर्श मत बघारिए।आप तो कुछ समझते नहीं।”
होरी ने धनिया से कहा - “बात अब समझने की नहीं है ,बात अब गुनने की है।तुम समझा करों, घर की परिस्थिति ऐसी नहीं रह गई है कि बिना कमाए गुजारा हो जाय। महगाईं देख रही हो,आसमान छू रहीं है।सरसों का तेल दो सौ बीस रुपए लीटर, आटा चालीस रुपए किलो, अरहर दाल दो सौ रुपए किलो,गैस नौ सौ रुपए प्रति सिलेंडर,टमाटर एक सौ बीस रुपए किलो,आलू पैंतीस रुपए किलो। देशी घी आठ सौ रुपए किलो जिसे खाए बिना ही जिंदगी जैसे कट जायेगी।उस पर तुम कह रही हो आदर्श मत बघारिये।इसमें आदर्श कैसा?जानती हो!मंहगाई से तो बिना खाए गुजार लेंगे पर कल सनैना तुम्हारी पोती और पोते दीपक के स्कूल की फीस छ:सौ रुपए जमा करानी है जिसका कल अंतिम दिन है इसलिए मुझे रिक्शा लेकर जाना ही पड़ेगा।”
जानती हो!एक दिन कतवारू मुझसे कह रहा था - “सुनैना को अब मत पढ़ाइए उसे दूसरे घर जाना है। उस पर पैसा क्यों बर्बाद कर रहें हैं?”मैंने उससे कहा - “मेरी तीन पीढ़ी में बड़े अरमान से सुनैना का जन्म हुआ है और मुझे सुंदर नैन वाली अपनी पोती को पढ़ा लिखा के आंख का डॉक्टर बनाना है।”इस बात से क्रोध में धनिया बोली- ' खाने को इस महंगाई में जुट नहीं रहा है और इन्हें पोती को डॉक्टर बनाना है।' पढ़ाना ही है तो मेरे पोते दीपक को पढ़ाओ!वो मेरे कुल का दीपक बनेगा।'
सुनैना और दीपक को लेकर किसे पढ़ाया जाए इस बात पर घर में अक्सर तकरार होती रहती है।इस बात से सुनैना दुखी भी रहती है क्योंकि दीपक को आगे पढ़ाने के पक्ष में घर में तीन लोग पिता-माता और दादी है तो वहीं दादा ही उसके पक्ष में हैं और दादा वृद्ध भी हैं और उनकी घर में उनके बढ़ती उम्र के साथ कद्र भी धीरे-धीरे घट रही है।सुनैना की चिंता यह भी है कि कल उसकी और दीपक की फीस की आखरी तारीख है और छः सौ रुपए का इंतजाम हो पाएगा या नहीं। कहीं तीन सौ ही हो पाया तो दीपक की ही फीस ये लोग जमा कराएंगे।
पापा वैद्य के यहां दवा लेने गए हैं और दादा को तेज बुखार है।कतवारू के पास जो एक सौ पचास रुपए थे वो भी वैद्य ने दवा के पैसे के रूप में लेकर दवा दे दी।अब फिलहाल घर में नकद पैसा भी नहीं है। खटिया पर लेटे लेटे होरी सोच में पड़ गया कि गरीबी बहुत बुरी बला है।आदमी की उम्मीद को तोड़ कर रख देती है।उसे घर के पतीले का खालीपन बहुत सालता है।घर में छः लोगों का बोझ उस पर से ये मंहगाई जैसे मार ही डालेगी।तभी होरी के कानों में दूर से बजते रेडियो से गीत ' सखी शैया त खुबै कमात है मंहगाई डायन खाए जात है' सुनाई देता है।यह गीत होरी की जिंदगी का हिस्सा बन गया है।होरी मन ही मन इस गीत को लिखने वाले को धन्यवाद देते हुए धनिया से कहता है - ' जानती हो!कल चट्टी पर रिक्शा लेकर खड़ा था दो सज्जन आपस में बात कर रहें थे कि समाज की पीड़ा को लिखने वाले कवि लोग समाज को बहुत समझ कर इतना बढ़िया लिख देते है कि वो सभी की अभिव्यक्ति बन जाती है और आपस में बातचीत में दूसरे सज्जन ने कहा ' जहां न जाय रवि वहां पहुंचे कवि '।ये कवि लोग समाज का दर्पण होते है।जैसे मंहगाई पर लिखा गीत हमारे जीवन की कहानी बन गया है।'
सुनैना यह सोच कर सिहर जा रही है कि आज अगर किसी तरह पापा या दादा तीन सौ ही कमा पाए तो दीपक का ही फीस जमा होगा उसका नाम स्कूल से कट जायेगा। वैद्य की दी गई दवाई को घर देकर कतवारू काम पर चला गया।काम पर लेट पहुंचने पर ठीकेदार ने आधा दिन का दिहाड़ी मेट से काटने का निर्देश देते हुए कतवारू को काम पर लगा दिया।कतवारू लाख चिल्लाता रहा माई- बाप शाम को ओवर टाइम कर दूंगा पैसा मत काटिए पर ठीकेदार ने कहा - “पैसा तो कटेगा और अगर नहीं कटवाना है तो आज घर जाओ,कल समय पर आना तब काम करना।”कतवारू ने कहा - “नही साहब!काट लीजिए पर काम करने दीजिए।आधा दिन का तो मिल जायेगा। “
कतवारू के काम पर लग जाने के बाद ठीकेदार ने मेट से कहा - “जानतें हैं मेट साहब!इन मजदूरों के पैसे काटकर ही तो हम लोग गाड़ी से चल रहें हैं और मेट्रो जैसे शहर में बड़े- बड़े आलीशान बंगले में रह रहें हैं।जब तक ये मजदूर हमारे यहां काम करते रहेंगे हमारी चांदी बनी रहेगी।इन मजदूरों को हमेशा यह लगना चाहिए कि उनकी नौकरी खतरे में हैं।जब वे खतरा महसूस करेंगे तो हमें अपना मालिक समझेंगे।मालिक हमेशा मजदूरों का शोषण करते हैं पर इन मजदूरों को इस बात की जानकारी कभी नहीं होनी चाहिए।”
वैद्य की दवा का असर अच्छा रहा और होरी का बुखार कम होकर हरारत में तब्दील हो गया।होरी को अब हिम्मत आने लगी उसने सुनैना से कहा बेटा - ' एक कप चाय पिला दो अब मैं रिक्शा लेकर निकलूंगा।' सुनैना के हाथ की चाय का कमाल था कि दादा जी में जैसे जोश आ गया और वो लंबे-लंबे कदमों से अपने रिक्शे की तरफ बढ़ने लगे।अब उन्हें सुनैना की तकदीर बदलने के लिए मिली इस ताकत का एहसास अंदर से भी आ रहा था।जैसे ही वो रिक्शा लेकर शहर के चौक पर पहुंचे और सवारी को आवाज दी - ' आइए-आइए कहा जाना है बाबू जी?उसी पल बैटरी वाले रिक्शे ने भी आवाज दी आइए- आइए कहा जाना है बाबू जी?तब लगभग होरी के रिक्शे पर बैठने वाले सवारी ने उतरते हुए बोला - “अरे हट बुड्ढे आराम करने की उम्र में रिक्शा खींच रहा है ।एक तो पैसा भी तीन गुना लेगा और धीरे-धीरे चलेगा भी कौन तुम्हारे रिक्शे में बैठेगा?वो देखो बैटरी वाला रिक्शा तेज भी चलेगा और पैसा भी कम लेगा।अरे जाओ! आराम करो!मुझे नहीं बैठना! तुम्हारे रिक्शे में!मैं बैटरी वाले रिक्शे में ही जाऊंगा।”
होरी को मानो 'काटो तो खून नहीं।' होरी कहां से इतने पैसे जुटाए कि बैटरी वाला रिक्शा खरीद लाए।उसे बैटरी वाला रिक्शा चलाने भी तो नहीं आता।आज उसे अपने पिता पर भी गुस्सा आ रहा था।उसके पिता ने उसकी बहन की शादी के वक्त मंहगाई और दहेज के कारण उसकी पुस्तैनी चार बिस्से जमीन भी बेच दी थी। होरी के पास रहने के लिए एक कमरे का मकान और ले देकर यही एक रिक्शा उसके परिवार के भरण-पोषण का माध्यम है और ये बैटरी रिक्शे वाले उसकी इस काबिलियत और धंधे दोनों पर लात मारकर उसके अरमानों का गला घोट रहें हैं।
ले देकर एक सवारी मिली। होरी ने कहा - “आइए बाबू जी कहां जाना है?सवारी ने बोला सदर अस्पताल ले चलो!
होरी ने कहा -”बैठिए बाबू जी।पचास रुपए लगेंगे छोड़ देता हूं।सवारी ने कहा -“ठीक है चलो।”रिक्शा चलाते हुए होरी बोला - “बाबू जी आपको जल्दी नहीं है लोग तो बैटरी वाले पर बैठकर घर्र से जाना चाहते है,पर आपने मुझे क्यों चुना।”सवारी ने पीछे से बोला -”मैं होम्योपैथ का डॉक्टर हूं और मेरा एक करीबी कई दिनों से सदर अस्पताल में भर्ती है उसी को देखने जा रहा हूं।मेरे प्रोफेशन में सब धीरे-धीरे होता है इसलिए मुझे कोई जल्दी नहीं है।मैं चरैवती-चरैवती सदा चलते रहो यानी धीरे- धीरे चलने वाला, मध्यम मार्गी हूं।”होरी को अब लगने लगा कि बाबू जी सज्जन इंसान हैं।होरी को इंसान की पहिचान है।वह यह जानता है कि कौन सी बात कब और किससे कहनी चाहिए।
रिक्शा चलाता हुआ होरी न जाने कितने ख्वाब नैन में बसाए रिक्शा चला रहा है। होरी के नैन में सुनैना और दीपक की कल की फीस का इंतजाम कैसे होगा? यह चल रहा है।होरी के जेहन में न जाने कितने सवाल उमड़-घुमड़ रहें हैं।
शाम के 05 बजाने वाले है और आज का वातावरण भी बहुत उमस भरा है परंतु होरी जिस उलझन में है उसे उमस का एहसास नहीं है। वातावरण में अधिक उमस और वैद्य की दवा के प्रभाव से होरी का पूरा का पूरा शरीर भीग गया है ।होरी बाहर से भीग रहा है और अंदर से पसीज रहा है। होरी की कशमकश उसे बेचैन की हुई है। मेहनतकश इंसान होने के नाते होरी स्वाभिमान से कोई समझौता भी नही करना चाहता।
चलते रिक्शे से पीछे से बाबू जी ने आवाज दी- “भाई तुम तो पूरा भींग गए हो। तुम्हें बुखार आ जायेगा।तुम ऐसा करो रिक्शा यहीं रोक दो,मैं पैदल चला जाऊंगा।अब वैसे भी सदर अस्पताल ज्यादा दूर नहीं है।” होरी को लगा बाबू जी मुझ पर एहसान कर रहे हैं अगर इन्हें पैदल ही जाना था तो इन्होंने रिक्शा क्यों लिया? होरी अंदर ही अंदर बाबू जी से कुछ कहना भी चाह रहा है और उन्हें सदर अस्पताल तक छोड़ना भी चाह रहा है।होरी को लग रहा है कि बीच में छोड़ने पर कही बाबू जी पैसा न काट लें।आदमी का दिन खराब होता है तो उसे और बहुत बुरे दौर से गुजरना पड़ता है।हिंदी साहित्य में एक मुहावरा भी है - ' कोढ़ में खाज ' अर्थात जब कोई परेशान रहता है तब उस समय इस तरह की परिस्थिति बनती चली जाती है कि परेशानी दर परेशानी आती जाती है।परेशानी कम होने का नाम नहीं लेती।होरी को अपने इस परेशानी में फिल्म आखिर क्यों?फिल्म का राजेश खन्ना और स्मृता पाटिल पर फिल्माया और मुहम्मद अजीज - लता मंगेशकर का गाया गीत कानों में सुनाई दे रहा है।गाने के बोल हैं - “दुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है लोगों का गम देखा तो मैं अपना गम भूल गया।”
इसी उधेड़बुन में सदर अस्पताल का गेट सामने आ गया।बाबू जी ने होरी से कहा -“चाचा जी आपका नाम क्या है?होरी ने कहा - “जी होरी!”आप तो एकदम भींग गए हैं। आइए मेरा मन हो रहा है कि चाय पी लूं,आप भी पी लीजिए।होरी ने कहा - “बाबू जी चाय फिर कभी पी लूंगा अभी मुझे कमाने के लिए निकलना होगा।”बाबू जी ने कहा - “जीवन रहेगा तब न कमाओगे।”होरी ने कहा - “बाबू जी मुझ गरीब को अभी कुछ नहीं होगा,मुझ पर जिम्मेदारियों का बोझ है।मैं अभी मरना भी चाहूं तो नही मर सकता।”ऐसा क्या बोझ है तुम्हारे ऊपर?बाबू जी ने पूछा।” होरी को लगा बाबू जी से बता दे फिर संकोच बस अपने को रोकने लगा , नहीं बाबू जी इस दुनिया में सब परेशान है और उसका समाधान उसे खुद ढूंढना पड़ता है।”मालूम होता है मेरी तरह बहुत स्वाभिमानी हो।
होरी ने कहा -”स्वाभिमान हमारा कहा होता है बाबू जी,गरीब का स्वाभिमान कहा रह पाता है।बाबू जी आज आप अपने दवा का कोई सामान नहीं लिए हैं। क्या मैं आपको डॉक्टर साहब कह सकता हूं।”बाबू जी ने कहा -”क्यों नहीं कहो।”पर तुम सवारी से इतनी आत्मीयता क्यों दिखा रहे हो।कुछ देर की मुलाकात है अभी तुम अपने रास्ते मैं अपने।डॉक्टर साहब आप मुझे बहुत अच्छा इंसान लग रहें हैं आप से एक बात पूछूं नाराज तो नही होंगे। डॉक्टर साहब ने कहा - पूछों।डॉक्टर साहब!डॉक्टर बनने में कितना समय और कितना पैसा लगता होगा?
देखो होरी!जब तुम पूंछ रहे हो तो बता देता हूं। डॉक्टर बनने के लिए अलग-अलग पढ़ाई होती है जो जिस डिविजन में जाना चाहता है उसके अनुसार पैसा लगता है।डॉक्टर साहब!आंख का डॉक्टर बनने में कितना पैसा लगेगा?तुम ये सब क्यों पूंछ रहे हो?डॉक्टर साहब ने हैरानी से पूछा।होरी ने कहा - “डॉक्टर साहब मेरी पोती है सुनैना इस समय इन्टर में पढ़ रही है।मैं उसे आंख का डॉक्टर बनाना चाहता हूं।”देखो होरी पैसा तो बहुत लगता है।समय पांच साल लगेगा।हां!अगर सरकारी कॉलेज में प्रवेश मिल गया तो पैसा कम लगता है।अब कौतूहल बस होरी ने कहा - “सरकारी कॉलेज में कैसे दाखिला मिलता है।”डॉक्टर साहब ने कहा - “मेडिकल के प्रवेश में अच्छे अंक प्राप्त करने पर सरकारी कॉलेज मिल जाता है।”
इस दुनिया में कम मां बाप हैं जिनके बच्चे ऐसे है जिन्हें सरकारी कॉलेज में दाखिला मिल पाता है। होरी!तुम ठहरे रिक्शा वाले तुम्हारी पोती इतना मेहनत कर लेगी।अभी तो उसका इंटर है,पहले खूब जमकर अच्छे नंबर में इंटर पास हो के दिखाए तब पता चलेगा कि मेडिकल में जा पाएगी अथवा नहीं।सहसा होरी को याद आया कि उसे अभी पांच सौ पचास रुपए और कमाना है।होरी ने डॉक्टर साहब से कहा - “साहब हमें हमारी मजदूरी दे दीजिए हमें अभी निकलना होगा।”डॉक्टर साहब ने कहा - “क्यों”?तब होरी ने मौका देखकर बताया कि डॉक्टर साहब हमें कल सुनैना और दीपक का छः सौ रुपया फीस भरना है वरना दोनों का नाम स्कूल से कट जायेगा।डॉक्टर साहब ने कहा - “अब तो शाम हो गई है अब पैसा कैसे कमा सकते हो?”एक काम करों मुझसे पांच सौ पचास रुपए उधार ले लो जब हो जाय तब लौटा देना।”होरी को लगा कि बात तो ठीक है और डॉक्टर साहब अपने से दे रहें हैं इसमें मेरा स्वाभिमान भी प्रभावित नहीं हो रहा है।होरी ने डॉक्टर साहब को मरीज देखकर आने के लिए कहा और साथ में यह भी कह दिया कि मैं ही रिक्शा धीरे धीरे चलाकर आपको, आपके घर छोड़ देता हूं इसी बीच मैं आपका घर भी देख लूंगा और जब पैसा हो जाएगा तब लौटा भी दूंगा।
होरी डॉक्टर साहब को घर छोड़कर उनसे घर छोड़ने का पचास रुपए सहित सौ रुपए मजदूरी के और पांच सौ रुपए उधार लेकर रात नौ बजे किसी तरह घर वापस आ रहा है।होरी की आंख में एक अजब तरह की ताजगी लग रही थी।रात के अंधेरे में उसे ठीक से दिखाई भी नही दे रहा था।होरी ये सोच रहा था जब उसकी पोती सुनैना आंख का डॉक्टर बन जाएगी तब वो उससे अपने दोनों आंखों का ऑपरेशन कराएगा जिससे उसे रात में भी ठीक से दिखाई दे सके।होरी खुशी- खुशी घर आ गया।घर पर कतवारू पहले से आ चुका था।कतवारू ने होरी से कहा - “आज मेरे ठिकेदार ने हमें पैसा नहीं दिया ,मैं लाख कहता रहा कि मेरे दोनों बच्चों का फीस जमा करना है पर वो नहीं माना।मेरा मन बहुत उदास है।भगवान जब गरीबी दे तो फिर बड़े सपने नही देखना चाहिए।आज मुझे बहुत रोना आ रहा है।मन बैठ रहा है।कल मेरे दोनों बच्चों का नाम स्कूल से कट जायेगा और मैं कुछ कर नहीं पाऊंगा। होरी ने कहा -”मन हल्का कर लो कतवारू! मैंने रुपए का इंतजाम कर लिया है।कल बच्चों की फीस जमा हो जायेगी और मेरी पोती को मै डॉक्टर बनाऊंगा।”
होरी ने सुनैना को बुलाकर छः सौ रुपए दिए और सुनैना से कहा -”कल स्कूल की फीस जमा कर देना।दीपक के हाई स्कूल के क्लास टीचर से भी मिल लेना, इसकी पढ़ाई की जानकारी भी ले लेना।आप दोनों मेहनत से पढ़ो। हम अपने सामर्थ अनुसार पढ़ाएंगे।होरी ने सुनैना से कहा - “मेरा सपना है सुनैना तुम आंख की डॉक्टर बनो।”
सुनैना ने मेहनत से इंटर फर्स्ट क्लास में पास कर लिया और मेडिकल की प्रवेश परीक्षा नीट पास करके होरी की इच्छानुसार आंख के मेडिकल कॉलेज में दाखिला के लिए कॉलेज एलॉटमेंट करा लिया। अब दादा को मेडिकल कॉलेज में फीस भरने की जिम्मेदारी आ गई । सुनैना ने कॉलेज संपर्क कर के पता किया तो कॉलेज के स्टाफ ने बताया कि एक साल की फीस पचास हजार रुपए है जो होरी के लिए बहुत ज्यादा के साथ असंभव जैसा है। फीस की व्यवस्था के लिए डॉक्टर साहब के यहां होरी डरते- डरते पहुंचा।डॉक्टर साहब मरीज देख रहे थे।मरीज देखने के बाद उन्होंने कंपाउडर से होरी को बुलवाया।होरी के आने के बाद उन्होंने उससे पूछा - बताओ होरी क्या हाल चाल है?तबियत कैसी है?सुनैना को मेडिकल में प्रवेश मिला कि नहीं?डॉक्टर साहब के इतने प्रश्न एक साथ होने से होरी घबराकर बोला - “साहब मैं तो ठीक हूं,आपसे सुनैना की प्रवेश की खुशी साझा करने के साथ मदद के लिए आया हूं।क्या सुनैना का प्रवेश हो गया?जी कॉलेज मिल गया है पर पचास हजार रुपए कॉलेज वाले मांग रहे हैं उसी में आपकी मदद चाहिए।
डॉक्टर साहब ने हैरानी से होरी की तरफ देखा और कहा - “देखो होरी हजार, पांच सौ तो ठीक है,एक साथ पचास हजार रुपए मैं कैसे व्यवस्था कर सकता हूं?मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं पर कैसे ?यही परेशानी है।देखो तुम एक दो दिन का समय दो मैं कुछ सोच कर बताता हूं।डॉक्टर साहब होरी के जाने के बाद इस सोच में पड़ जाते हैं कि क्या करूं?एक बार यह भी सोचते हैं कि अगर सुनैना की फीस नहीं जमा हुई तो उसका कैरियर तबाह हो जायेगा।डॉक्टर साहब के पास इतना पैसा भी नहीं है कि वो होरी की मदद कर पाएं।डॉक्टर साहब को होरी की भोली सूरत याद आ रही है।होरी गरीब है अगर मैं कहीं से पैसा लगा भी दूं तो वो कैसे चुका पाएगा?यह भी एक बड़ा प्रश्न है।इस घटनाक्रम में उन्हें अपनी पोती निशा की याद आने लगी जिसे बड़ा करके डॉक्टर साहब आंख का डॉक्टर बनाना चाहते थे,पर नियति ने निशा को एक दुर्घटना में उनसे छीन लिया।जिस दिन दुर्घटना घटी थी उस दिन डॉक्टर साहब ने अपनी पोती जो उस समय कक्षा नौ की छात्रा थी को स्कूल न जाने की सलाह भी दी थी पर निशा नही मानी और स्कूल चली गई।स्कूल से वापस आते समय एक कार ने निशा की साइकिल में इतनी जोर से धक्का मारा कि निशा जमीन पर गाड़ी के आगे गिर गई और गाड़ी वाले ने जल्दीबाजी में निशा के ऊपर से गाड़ी चढ़ा दी और भाग गया।निशा का घटना स्थल पर ही देहांत हो गया।यह गम डॉक्टर साहब के सीने में सदा के लिए दफन था पर सुनैना में उन्हें न जाने क्यों अपनी पोती निशा दिख रही है।
इसी उहापोह में न जाने कब रात हो गई उन्हें पता ही नही चला।रात नौ बजे जब घड़ी ने नौ बार का घंटा बजाया तब उनकी तंद्रा टूटी और वो घर के लिए निकले।रात को भी ठीक से उन्हें नींद नही आई।सुबह उठे तो फिर होरी की समस्या का निदान खोजने के लिए पड़ोस के बैंक मैनेजर के यहां पहुंच गए।बैंक मैनेजर को अपनी जरूरत बताई कि उन्हें पचास हजार रुपए की जरूरत है।बैंक मैनेजर ने कहा - “आप अपने घर का कागज देकर रुपए ले सकते हैं या अपनी डिस्पेंसरी पर भी लें सकते है।डॉक्टर साहब बिना कुछ कहे बैंक मैनेजर के यहां से चले आए।
इधर होरी फीस के लिए परेशान है।सुनैना ने होरी से कहा - “मेरी फीस जमा करने की दो दिन बाद आखिरी तारीख है।होरी ने कहा -”ठीक है बेटा मैं आज डॉक्टर साहब के यहां जाऊंगा।”शाम को रिक्शा लेकर होरी डॉक्टर साहब के घर पहुंच गया।डॉक्टर साहब से होरी बोला - “डॉक्टर साहब ले दे के आप ही सुनैना की फीस के लिए कुछ कर सकते हैं,मेरी आस अब टूट रही है।”डॉक्टर साहब ने कहा - “देखो होरी आस ही जिंदगी है,जिंदगी में आस के भरोसे ही जिया जाता है।सुनैना तो तुम्हारी आस के साथ- साथ अब मेरी भी आस है।मैंने बहुत सोचकर अब ये निर्णय लिया है कि जैसे भी हो तुम्हें सुनैना को पढ़ाना होगा पर मेरी एक शर्त है।” होरी डॉक्टर साहब से शर्त शब्द सुनकर घबरा गया और आश्चर्य से पूछा -”कैसी शर्त डॉक्टर साहब?”डॉक्टर साहब ने कहा -”अरे!घबरा गए क्या?मेरी शर्त यह है कि मैं कल तुम्हारे घर आकर पहले सुनैना से मिलूंगा फिर निर्णय हो जायेगा कि क्या करना है ?”
रात को होरी रास्ते भर यह सोचता रहा कि डॉक्टर साहब सुनैना से क्यों मिलना चाहतें हैं?इसका उत्तर तो उसके पास नहीं है पर यह प्रश्न उसे परेशान जरूर कर रहा है।घर पहुंच कर उसने सुनैना को बुलाया और सारी बाते बताई।सुनैना से कहा - “देखो बेटा कल एक डॉक्टर साहब तुमसे मिलने आयेंगे तुम सुबह उठकर स्नान करके तैयार रहना पता नही कब वो आ जाएं ।वो जो कुछ पूछेंगे सही-सही बता देना।”सुबह 07 बजे डॉक्टर साहब होरी के घर पर आ गए।
दरवाजे पर ही होरी को बैठा देख कर बोले - “अरे होरी! तुम तो बाहर ही मिल गए।” डॉक्टर साहब मेरा एक कमरे का मकान है क्या बाहर क्या अंदर ?आपसे क्या छुपाना? डॉक्टर साहब बोले - “होरी सुनैना को बुलाओ।”होरी ने आवाज लगाई - “सुनैना वो सुनैना!देखो डॉक्टर साहब तुमसे मिलने आएं हैं।”सुनैना बाहर आई और डॉक्टर साहब का दोनों पैर छूकर प्रणाम किया और बोली- “मैं जल्दी से चाय बनाकर लाती हूं।”डॉक्टर साहब बोले -”नही बेटा! इस समय मैं चाय नहीं पीऊंगा। मैं घर से चाय पी कर आ रहा हूं।तुम एक गिलास सिर्फ पानी ला दो।”
सुनैना के हाथ से पानी का गिलास पकड़ते हुए,डॉक्टर साहब सुनैना को अपने पास बैठने का इशारा करते हुए बोले - “सुनैना तुम ईमानदारी से बताओ!तुम डॉक्टर क्यों बनना चाहती हो?”सुनैना ने कहा - “मैं डॉक्टर बनकर समाज के जरूरत मंद लोगों की मदद करना चाहती हूं।जिन लोगों के पास पैसे नहीं होंगे और उन्हें इलाज की आवश्यकता है मैं उनका इलाज मुफ्त में करना चाहूंगी।एक बात और कहना चाहूंगी कि मेरे दादा जी का सपना है कि मैं आंख का डॉक्टर बनूं इसलिए मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं।”
डॉक्टर साहब बोले - “वाह बेटा ! तुमने मेरा दिल जीत लिया।अब जाओ और खूब मन लगाकर पढों।”
सुनैना के अंदर जाने के बाद डॉक्टर साहब होरी से बोले - “होरी सुनैना को अब डॉक्टर बनाने की जिम्मेदारी मेरी भी है।तुम सुनैना की चिंता करना छोड़ अपने सेहत पर ध्यान दो।मैं आज ही बैंक जाकर पैसे निकालकर तुम्हें दे दूंगा कल जाकर इसकी फीस जमा कर देना।”होरी को तो काटो तो खून नहीं!वाली निशब्द की स्थिति हो गई।होरी को अपना सपना सच होते दिखाई देने लगा।आज होरी का पैर जमीन पर नहीं है।डॉक्टर साहब के जाने के बाद होरी ने खुद घर के पूजा घर में नहा धोकर घर में बचे थोड़े से घी से घी का दीया जलाया।आज का दिन होरी की जिंदगी का सबसे बेहतरीन दिन है।
डॉक्टर साहब से मिले पैसों से सुनैना का प्रवेश हो गया।एक तरफ सुनैना की पढ़ाई चल रही है तो दूसरे तरफ होरी की परीक्षा। होरी दिनभर जो भी पैसा रिक्शा चला कर कमाता उसमे से घर के खर्च को कम से कम में निपटाने के बाद सुनैना की पढ़ाई के लिए बचाकर रखता।बीच बीच
में डॉक्टर साहब के यहां भी जाना न भूलता।एक दिन शाम को होरी ने डॉक्टर साहब से कहा - “डॉक्टर साहब मैंने कुछ पैसे बचाकर रखा है आप कहें तो उसमें से कुछ आपके दिए उधार वाले हिसाब में लौटा दूं।”डॉक्टर साहब ने कहा -”होरी मेरे पैसे कहां भागे जा रहे हैं वो तुम्हरे पास हैं या मेरे पास बात एक ही है। तुम अपने पास ही रहने दो,मुझे जरूरत होगी तो बता दूंगा और लेना होगा तो ले भी लूंगा।”
डॉक्टर साहब की नीति और नीयत दोनों साफ है उन्होंने होरी से पैसा इसलिए नही लिया कि वह अपने को समृद्ध समझें और पैसा रखने की भी आदत डालें क्योंकि पैसा रहने से आदमी का दिमाग़ शांत रहता है और वह अपने काम में मन लगाकर काम भी करता है।होरी का काम अब आसान सा लग रहा है।डॉक्टर साहब की मदद से सुनैना अपने डॉक्टरी की पढ़ाई के अंतिम वर्ष में इंटरनसिप तक आ गई।उसे अपने संघर्ष के दिन याद आ रहे है पर एक दिन अचानक उसे सूचना होरी के माध्यम से मिली कि उसके डॉक्टर साहब अंकल का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।होरी का रो रो कर बुरा हाल है।होरी हर शाम रिक्शा लेकर डॉक्टर साहब के घर जाता है और थोड़ी देर उनके घर के पास रहकर अवसाद ग्रस्त घर वापस आ जाता है।
एक दिन अचानक उसे डॉक्टर साहब द्वारा अपने उधार के पैसे न लेने की याद आई।डॉक्टर साहब ने कहा था - “होरी मेरे पैसे कहां भागे जा रहे हैं……।अब वो रोमांचित होते हुए अपने को सहेजते हुए मन में बोला - “डॉक्टर साहब आप मानव नहीं महामानव थे।आप इस धरती पर मानव रूप में देवता थे जब मैं आपसे पहली बार मिला था मुझे तभी यकीन था आप सरलता और सहजता की प्रतिमूर्ति थे।”होरी धीरे- धीरे डॉक्टर साहब की नीति और नीयत से परिचित होते हुए उनके द्वारा अपने ऊपर किए गए एहसान तले दबा महसूस कर रहा था।आज वो अपने संघर्षों के साथी को तो खो चुका है पर उनके द्वारा लगाये गए सुनैना जैसे वट वृक्ष को उसे अभी पल्लवित,पुष्पित होते देखना है।
सुनैना को इंटरनसीप से भी अब स्टाईपेंड के रूप में पैसे मिलने शुरू हो गए।सुनैना की पढ़ाई का खर्चा अब वो खुद वहन करने लगी।दीपक की भी पढ़ाई का कुछ जिम्मा उसने उठा लिया। होरी को अब उस दिन का इंतजार है कब सुनैना डॉक्टर बन कर आए।आखिर छः माह बाद वह दिन भी आ गया जब हाथ में डॉक्टर की उपाधि लिए सुनैना घर आई और अपने दादा होरी का दोनों पांव छुते हुए बोली - “रिक्शा वाले दादा आपकी सदा जय हो, आज आपकी पोती डॉक्टर साहब बन कर आ गई।मुझे आशीर्वाद दीजिए।”होरी ने कहा - “खूब तरक्की करों बेटा सुनैना पर तुम सिर्फ डॉक्टर हो इस घर से सिर्फ एक डॉक्टर साहब का नाम जुड़ा है जिसे मैं गर्व से डॉक्टर साहब बुलाता था और वो इस दुनिया में सिर्फ एक थे जिन्होंने तुम्हे डॉक्टर बनाया बेटा कभी उन्हें मत भूलना।”इस खुशी के माहौल में धनिया ने घी के दिए से सुनैना की आरती उतारी और बोली - “सुनैना अब तुम आंख की डॉक्टर बन गई हो अपने दादा के आंख का ऑपरेशन कर दो रात में इन्हें ठीक से दिखाई नहीं देता।”सुनैना ने कहा - “दादी कल शहर के बड़े हॉस्पिटल में मुझे ज्वाइन करना है कल दोनों काम हो जायेगा।”सुबह बड़े शान से दादा होरी ने सुनैना को अपने रिक्शे पर बिठाया और शहर के बड़े हॉस्पिटल में ज्वाइन करवाने के बाद खुद एडमिट होकर सुनैना के हाथों आंख का ऑपरेशन कराकर,डिस्चार्ज होकर अपने रिक्शे पर सुनैना को बिठाकर बड़े शान से घर वापस आ कर धनिया से बोला -”आज रात में मैं तुम्हें अपने रिक्शे पर बिठाकर खुशी- खुशी घुमाऊंगा।जानती हो!सुनैना के ऑपरेशन करने के बाद मुझे अब रात में भी सब साफ- साफ दिखाई देता है।”खाना खाने के बाद होरी ने धनिया को अपने रिक्शे पर बिठाया और खुशी में गीत - ' जिंदगी एक सफर है सुहाना यहां कल क्या हो किसने जाना ' गाते हुए आगे निकलता गया और अपने संघर्षों को याद करते हुए अपने बीते दिनों में खो गया।एक रिक्शा वाला होरी आखिर तक हार नहीं मानता और घर वापस आने के बाद धनिया से यह कहते हुए रात में सोने चला जाता है कि उसे कल सुबह रिक्शा लेकर फिर निकलना है शायद किसी मोड़ पर डॉक्टर साहब जैसा नेक इंसान उसका इंतजार कर रहा हो।