करगिल के वीर शहीद रामसमुझ यादव: अमर कहानी, 30 अगस्त को लगेगा शहीद मेला।


आज़मगढ़।

रिपोर्ट: वीर सिंह

“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।”

जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ की ये पंक्तियाँ 1999 के कारगिल युद्ध के रणभूमि में जितनी सजीव थीं, आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। ये पंक्तियाँ विशेष रूप से समर्पित हैं—पूर्वांचल की धरती सगड़ी तहसील के नत्थूपुर गाँव के अमर लाल, वीर शहीद रामसमुझ यादव को, जिन्होंने बर्फ़ीली ऊँचाइयों पर मातृभूमि की रक्षा करते हुए प्राणों का बलिदान दिया।
🌾 किसान पुत्र से लेकर रणबांकुरे तक

साधारण किसान परिवार में जन्मे रामसमुझ के पिता राजनाथ यादव और माता प्रतापी देवी ने उन्हें परिश्रम, ईमानदारी और त्याग का संस्कार दिया।
ननिहाल तुरकौली झंझवा से प्राथमिक शिक्षा लेकर, मौलाना आज़ाद इंटर कॉलेज अंजान शहीद से हाईस्कूल, गांधी इंटर कॉलेज मालटारी से इंटर और श्री गांधी पीजी कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई उन्होंने अभावों के बीच पूरी की। आर्थिक तंगी ने कदम-कदम पर रोका, लेकिन हार मानना उनकी फितरत में नहीं था। कभी मज़दूरी, कभी खेत-खलिहान, कभी स्कूल फीस के लिए संघर्ष… यही उनका बचपन था।
वह घटना आज भी लोगों के जेहन में है—12 वर्ष की उम्र में वे रविवार को मज़दूरी कर रहे थे। प्रिंसिपल अजमल बेग साहब ने पूछा, “कल कहाँ थे?”
डरे स्वर में बोले—“घर पर।”
लेकिन सच कब तक छिपता! आँखों में आँसू भरकर कहा—
“सर, मेरी बहन बीमार है। दवा और फीस के पैसे जुटाने के लिए मजदूरी कर रहा था।”
उस मासूमियत में छिपा था भविष्य का योद्धा—जो हर हाल में जिम्मेदारी निभाना जानता था।

🪖 फौजी बनने का सपना

1997 में वाराणसी भर्ती होकर वे भारतीय सेना में शामिल हुए। 13 कुमाऊँ रेजिमेंट में उनकी तैनाती हुई और पहली पोस्टिंग—सियाचिन ग्लेशियर, जहाँ मौत भी हर रोज़ दस्तक देती है।
नौ माह की कठिन ड्यूटी के बाद वे घर लौटे। बहन की कलाई पर राखी बंधवाने और परिवार संग समय बिताने की इच्छा थी। लेकिन नियति ने दूसरा रास्ता लिखा था।
चंडीगढ़ पहुँचते ही छुट्टी रद्द—आदेश मिला:
“कारगिल मोर्चे पर जाना है।”
रामसमुझ ने बिना शिकवा आदेश स्वीकार किया। जाते-जाते बहन के लिए पत्र और थोड़े पैसे भेजे—“राखी का तोहफ़ा।”

⚔️ तुरतुर्क पहाड़ी पर अंतिम जंग

हनीफ सेक्टर का 5685 प्वाइंट—जहाँ दुश्मन किलेबंदी करके बैठा था। आदेश था: “हर हाल में पहाड़ी खाली करानी है।”

रामसमुझ उस समय तेज बुखार से तप रहे थे। साथियों ने कहा—“इन्हें आराम चाहिए।”
पर वे मुस्कुराए और बोले—
“नहीं! दवा खाकर तैयार हूँ। सुबह तक ठीक हो जाऊँगा। अब बस दुश्मन से लड़ना है।”

पूरी रात बर्फ़ीली ढलानों पर चढ़ाई…
सुबह 30 अगस्त 1999 को उन्होंने तिरंगे की शपथ ली और गोलियों की गड़गड़ाहट के बीच दुश्मनों पर टूट पड़े।

एक हाथ में एके-47, दूसरे हाथ में जज़्बा…
उन्होंने 21 पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर किया, बाकी को खदेड़ डाला।
लेकिन इसी वीरता में गोलियाँ सीने और पेट को चीर गईं।

22 साल का नौजवान अपने खून से कारगिल की धरती रंग गया।
रामसमुझ माँ भारती की गोद में हमेशा के लिए सो गए।

🏴‍☠️ गाँव में पहुँची खबर

जब उनका पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटकर नत्थूपुर पहुँचा, तो पूरा जिला उमड़ पड़ा।
नत्थूपुर से जीयनपुर, दोहरीघाट तक बाजार बंद—जन्माष्टमी के उत्सव की जगह सन्नाटा।

माँ प्रतापी देवी का कलेजा छलनी, बहन के हाथ में भाई की चिट्ठी और सामने तिरंगे में लिपटा भाई…
पिता राजनाथ यादव की आँखों में गर्व, और गाँव का हर बच्चा संकल्प ले रहा था—
“रामसमुझ भैया की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी।”

⚡ संयोग देखिए—
30 अगस्त को ही जन्मे रामसमुझ, 30 अगस्त को ही अमर हो गए।

🏅 अमर सम्मान

सेना ने उनके अदम्य साहस के लिए “मेंशन इन डिस्पैच” से सम्मानित किया।
क्योंकि अब रामसमुझ यादव केवल एक नाम नहीं, बल्कि पराक्रम का प्रतीक हैं।

🇮🇳 शहादत दिवस और शहीद मेला

उनकी याद में हर वर्ष 30 अगस्त को नत्थूपुर शहीद पार्क में शहीद मेला आयोजित होता है।
यह मेला शोक नहीं, संकल्प है—कि हम अपने वीरों को भुलाएँगे नहीं।

इस वर्ष 30 अगस्त 2025 को भी आयोजन भव्य होगा—

🎖️ मुख्य अतिथि: ब्रिगेडियर के.एस. मेहरा (सेना मेडल)

🏛️ विशेष अतिथि: आजमगढ़ सांसद धर्मेंद्र यादव

🌟 भोजपुरी गायिका कल्पना और गायक दुष्यंत शुक्ला प्रस्तुतियाँ देंगे

💃 सांस्कृतिक रंग भरेंगे—घोघिया नृत्य, कथक और करमा नृत्य

👏 विशेष सम्मानित अतिथि: गिरधारी लाल कक्का (शहीद विक्रम कक्का के पिता)

आयोजन की बागडोर सँभाल रहा है शहीद का परिवार—
पिता राजनाथ यादव, माता प्रतापी देवी और भाई प्रमोद यादव।

✦ अंतिम संदेश ✦

करगिल हमें याद दिलाता है—
“शांति की कीमत सिर्फ़ शब्दों से नहीं, बल्कि सैनिकों के बलिदान से चुकाई जाती है।”

🚩 आइए, इस 30 अगस्त को नत्थूपुर शहीद पार्क पहुँचें।
क्योंकि शहीद केवल याद करने के लिए नहीं होते—
वे हमें यह याद दिलाने के लिए होते हैं कि हमारा सिर सदैव गर्व से ऊँचा रहे।

और नया पुराने