आज़मगढ़।
रिपोर्ट: वीर सिंह
आजमगढ़। सगड़ी तहसील के बासगांव में जनता इण्टर कालेज बाजार गोसाई हरैया के पूर्व प्रधानाचार्य की श्रद्धाजंलि सभा में अपार जनसमूह उमड़ पड़ा। हर कोई शिक्षक व समाज सेवी श्री राय को श्रद्धाजंलि दी।
सगड़ी तहसील क्षेत्र के बांसगांव निवासी स्व. राजेन्द्र राय के पिता स्व. चन्द्रदेव राय पुलिस विभाग में दरोगा की नौकरी करते थे वह अपने एकलौते पुत्र राजेन्द्र राय को प्रशासनिक सेवा में नौकरी करने की इच्छा जाहिर करते थे लेकिन बचपन से समाज सेवा की जो इच्छा उनके मन में थी इसके लिए उन्होने शिक्षक की नौकरी ज्वाइन कर ली।
गोरखपुर के ककरही इण्टर कालेज से हाईस्कूल पास करने के बाद गांधी इण्टर कालेज मालटारी से इण्टर तथा गांधी पीजी कालेज से बीए शिब्ली से समाज शास्त्र से एमए व बीएड की शिक्षा के बाद 1971 में हरैया इण्टर कालेज में समाज शास्त्र के प्रवक्ता के पद पर तैनाती लेने के बाद शिक्षक कार्य के साथ साथ समाजिक कार्य में अग्रणी भूमिका निभाते रहे। एक पखवारा पूर्व उनके निधन से जहां शिक्षक समाज आहत हुआ वहीं सोमवार को उनके पुत्रों द्वारा एक श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन किया गया था जिसमें आजमगढ़, मऊ, गोरखपुर व जौनपुर जनपद के भूमिहार विरादरी (बेरुवार बंश) के लोग जुटकर उन्हे श्रद्धाजंलि दी। उनके साथ शिक्षक कार्य कर रहे रामशकल मौर्य ने बताया कि श्री राय शुरु से ही विन्दास जिन्दगी जिने के साथ ही साथ समाज सेवा में रुचि रखते थे। उन्होने बताया कि 1971 में जब प्रवक्ता का वेतन जब 200 से 250 रुपये थी उससे ज्यादा उनका खर्च था। वह मेघावी छात्र थे चाहते तो प्रशासनिक सेवा में नौकरी कर सकते थे उनके मन में जो समाज सेवा का भाव था वह उन्हे शिक्षक की नौकरी करने पर मजबूर कर दिया। मरते दम तक समाज सेवा ही करते रहे। यदि कोई छात्र पैसे के लिए मजबूर होता था तो उसकी भी मदद करते थे यही कारण था कि उनकी श्रद्धाजंलि के आयोजन का जिसने सुना बांसगांव की तरफ चल पड़ा।
गोरखपुर के ककरही इण्टर कालेज से हाईस्कूल पास करने के बाद गांधी इण्टर कालेज मालटारी से इण्टर तथा गांधी पीजी कालेज से बीए शिब्ली से समाज शास्त्र से एमए व बीएड की शिक्षा के बाद 1971 में हरैया इण्टर कालेज में समाज शास्त्र के प्रवक्ता के पद पर तैनाती लेने के बाद शिक्षक कार्य के साथ साथ समाजिक कार्य में अग्रणी भूमिका निभाते रहे। एक पखवारा पूर्व उनके निधन से जहां शिक्षक समाज आहत हुआ वहीं सोमवार को उनके पुत्रों द्वारा एक श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन किया गया था जिसमें आजमगढ़, मऊ, गोरखपुर व जौनपुर जनपद के भूमिहार विरादरी (बेरुवार बंश) के लोग जुटकर उन्हे श्रद्धाजंलि दी। उनके साथ शिक्षक कार्य कर रहे रामशकल मौर्य ने बताया कि श्री राय शुरु से ही विन्दास जिन्दगी जिने के साथ ही साथ समाज सेवा में रुचि रखते थे। उन्होने बताया कि 1971 में जब प्रवक्ता का वेतन जब 200 से 250 रुपये थी उससे ज्यादा उनका खर्च था। वह मेघावी छात्र थे चाहते तो प्रशासनिक सेवा में नौकरी कर सकते थे उनके मन में जो समाज सेवा का भाव था वह उन्हे शिक्षक की नौकरी करने पर मजबूर कर दिया। मरते दम तक समाज सेवा ही करते रहे। यदि कोई छात्र पैसे के लिए मजबूर होता था तो उसकी भी मदद करते थे यही कारण था कि उनकी श्रद्धाजंलि के आयोजन का जिसने सुना बांसगांव की तरफ चल पड़ा।