आज़मगढ़।
रिपोर्ट: वीर सिंह
लेख:
"युग युग के संचित संस्कार,
ऋषि -मुनियों के उच्च विचार!
धीरो- वीरों के व्यवहार,
यही हैं अपनी संस्कृति के आधार!" प्राय: किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र योग को संस्कृति की संज्ञा दी जाती हैं! संस्कृति सामान्यतः उस समाज के सोचने विचारने,कार्य करने खाने-पीने,बोलने नृत्य,गायन,तथा साहित्य -कला के क्षेत्र मे परिलक्षित होता है! किसी भी देश की अपनी एक स्वर्णिम संस्कृति तथा अपना खुद का एक साहित्य होता है, जो उस देश की भगौलिकता,विविधिता, को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है! संस्कृति के दो पक्ष होते हैं, यथा भौतिक पक्ष तथा मानसिक पक्ष! भौतिक पक्ष के अंतर्गत सभ्यता जबकि मानसिक पक्ष के अंतर्गत साहित्य को सम्मिलित किया जाता है! साहित्य के अंतर्गत एक साहित्यकार द्वारा अपने रचनात्मकता रूपी कार्य में संस्कृति के मूल्यों, आचार- विचारों तथा मान्यताओं की अभिव्यक्ति को स्थान दिया जाता है! इस प्रकार साहित्य और संस्कृति में एक अटूट संबंध पाया जाता है ! साहित्य समाज एवं राजनीति को एक बेहतर रास्ता दिखाता है, जब कभी भी समाज अथवा राजनीतिक लोगों मे विकार उत्पन्न हो जाता है,तब साहित्यकार के द्वारा सामाजिक राजनीतिक विद्रूपता पर करारा चोट कर उसे सदमार्ग पर कार्य करने के प्रति प्रेरित किया जाता है! अतः साहित्य समाज तथा राजनीति को हमेशा जनकल्याण के लिए प्रोत्साहित करने का कार्य करती है! इस प्रकार साहित्य का समाज एवं राजनीति के मध्य एक त्रिस्तरीय संबंध स्थापित हो जाता हैं!राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है कि "जब- जब राजनीति लड़खड़ाती है,तब-तब साहित्य उसे सहारा देने का कार्य करता है"! जिस देश की संस्कृति उच्च होती है वह देश उच्च आदर्शों से युक्त होता है उसके अपने उच्च मापदंड होते हैं, उच्च आदर्शों से युक्त देश के नागरिक सुसंस्कृत शब्दों से विभूषित किये जाते है! किसी देश में हर जाति , हर धर्म की अपनी एक अलग संस्कृति होती है, संस्कृति अच्छी अथवा बुरी दोनों हो सकती है, किंतु सभ्यता हमेशा सौंदर्य स्थापित करती है! अर्थात सभ्यता के भीतर भाग में बहने वाली धारा को ही हम संस्कृति कहते हैं! भारतीय संस्कृति में प्राचीनता के साथ-साथ नवीनता तथा पाचनशक्ति का अद्भुत गुण पाया जाता है! भारतीय संस्कृति तथा साहित्य का विकास देश की प्राकृतिक तथा सामाजिक तथा राजनीतिक उपज और जलवायु पर निर्भर करता है! उन्नत संस्कृति निम्न संस्कृति को प्रभावित करती है,किंतु उसे अपने आगोश मेनहीं लेती है! आर्य संस्कृति द्वारा अन्य जातियां बहुत अधिक प्रभावित हुई है इन जातियों ने भारतीय संस्कृति की उत्तम बातों को ग्रहण किया! संस्कृति प्राय:- धर्म से प्रेरित होती है और उसे अधिक प्रभावशाली बनाती हैं!अर्थात संस्कृति आत्मा है तो साहित्य देह है! प्राचीन काल में संस्कृति की प्राचीनता के साथी भारतीय साहित्य भी अति प्राचीन है प्राचीन काल में भारतीय संस्कृति का प्रभाव पश्चात संस्कृति पर गहरा था! वसुधैव- कुटुंबकम ,सत्यम -शिवम सुंदरम, अत: दीपो भव : ,भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है तो वहीं पूरे विश्व के लोगों को आदर्श नजरिए से भाई-बहन की संज्ञा देना हमारी संस्कृति की विशिष्ट पहचान रही है! वेद उपनिषद हमारी संस्कृति के प्राचीनतम साहित्यिक स्रोत है! हमेशा से हमारी प्राचीन संस्कृति में पश्चात संस्कृति को प्रभावित किया है! दुनिया के तमाम दार्शनिकों ने भारत आकर भारत की संस्कृति का बखूबी अध्ययन करके दुनिया के दूसरे देशों में इसकी सुगंध को फैलाने का कार्य किया! मध्यकालीन दौर मे भारतीय संस्कृति तथा साहित्य संकट के दौर से गुजरी गयी जिसका प्रभाव यह हुआ कि विदेशी आक्रमणों ने भारतीय संस्कृति को खंड- खंड करने का पूरा प्रयास किया साथ ही साथ साहित्य को तोड़ मरोड़ कर पेश करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त किया! भोगवादी विलासिता पूर्ण जीवन धार्मिक उन्माद वर्ग- भेद इस दौर में चरमोत्कर्ष पर था, जिसने भारतीय संस्कृति को काफी आघात पहुॅचाया! मध्यकालीन युग में भारतीय संस्कृति पर इस्लामियत का प्रभाव बखूबी रहा,इस तरीके से इस दौर में भारतीय संस्कृति विभाजन के दौर से गुजरी! भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व वसुधैव- कुटुंबकम, विविधता में एकता,समन्वय, इत्यादि रही है! जब कभी भी हमारी संस्कृति संक्रमण के दौर से गुजरी है अथवा समाज में मूल्यों का ह्रास होता है, तब- तब साहित्यकार के द्वारा संस्कृति को संक्रमण से निकाले एवं समाज में मूल्यों को बनाए रखने का प्रयास किया जाता रहा है! भारतीय संस्कृति में अध्यात्म और भौतिकवाद का समन्वय स्पष्ट रूप से नजर आता है!इसमें आध्यात्मिक शक्तियों को अधिक महत्व देने के कारण धर्म एवं दर्शन की परंपरा नजर आती है, इसलिए इसमें दृढ़ता है! वर्तमान युग में समाज के अंदर उच्च आदर्शों उच्च मूल्यों की स्थापना का अभाव होता दिख रहा है अपने आदर्शों मूल्यों को भूलते जा रहे हैं तथा धीरे-धीरे पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ते नजर आ रहे हैं साहित्य समाज का मोहभंग होता जा रहा है! जब कभी भी हमारी संस्कृति संक्रमण के दौर से गुजरी है अथवा समाज में मूल्यों का ह्रास होता है तब साहित्यकार के द्वारा संस्कृति को संक्रमण कालीन परियों से निकाले एवं समाज में मूल्यों को बनाए रखने का प्रयास किया जाता है वसुधा भारतीय संस्कृति में अध्यात्म और भौतिकवाद का समन्वय नजर आता है यह आध्यात्मिक को अधिक महत्व देने के कारण धर्म एवं दर्शन की परंपरा नजर आती है इसलिए उसमें दृढ़ता हैं! साहित्य का शाब्दिक अर्थ सहित अथवा समावेश की भावना से समझा जाता है! किसी भी समाज का साहित्य का लेखा-जोखा होता है, जो उस राष्ट्र की सभ्यता की पूरी जानकारी धारण लिए हुए होता है! किसी भी काल के साहित्य में उस समय की सामाजिक राजनीतिक परिस्थितियां राजनीतिक वातावरण गतिविधियों का पता चलता है दूसरे से जुड़े हुए हैं!साहित्य समाज का संबंध युग युगांतर से विद्यमान है और इसके यथावत रहने की पूरी निश्चिता की जा सकती है! साहित्य की शरण में लोकमंगल की भावना विद्यमान है, साहित्य का उद्देश्य मात्र मनोरंजन नहीं,बल्कि समाज यदि भटक रहा है, तो उसका समुचित मार्गदर्शन करना भी है! समाज के लिए पीड़ा व समाज के कल्याण की दिशा में सूचना का प्राथमिक उद्देश्य है!साहित्य मानव जीवन का दर्पण है, साहित्य मानसून को प्रतिबंधित करने के साथ-साथ से प्रभावित करने का भी कार्य करता है! साहित्य को जब हम जीवन का दर्पण मानते हैं तब उसमें सामाजिक राजनीतिक चेतना के दर्शन हो जाते हैं! वेदव्यास कृत महाभारत, वाल्मीकि कृत रामायण कालिदास के नाटक भारतीय संस्कृति साहित्य की अमूल्य निधि है! जब साहित्य का भक्ति काल प्रारंभ हुआ तब भारत विदेशी आक्रमणों तथा इस्लामिक प्रभावों से उबर कर आगे बढ़ने के लिए प्रयास कर रहा था और उस समय के साहित्य में इस बात की पूरी झलकती है! राम भक्ति के महानतम कवि गोस्वामी तुलसीदास ने तत्कालीन समाज की समस्याओं का अद्भुत चित्रण व समाधान श्रीरामचरितमानस के रूप में प्रस्तुत किया! इसी दौर में कबीर ने साहित्य के माध्यम से समाज सुधार के अनेकों प्रयास किए तथा जैसे-जैसे सूफी कवियों ने सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ाने वाली अनेकों कविताएं लिखी शांति की दिशा में समाज का मार्गदर्शन किया तो वहीं उत्तरी भारत की संत परंपरा में संत शिवनारायण ने दलित जाति के उत्थान के लिए अनेकों ग्रंथों की रचना कर उनमें सुधार लाने का पूरा प्रयास किए! वर्तमान कालखंड में भारतीय समाज प्रगति की राह पर चल पड़ा हैं, जिसको साहित्य चेतावनी देता हुआ प्रतीत होता है! आधुनिक काल में भी साहित्य के द्वारा निरंतर समाज के पुनर्जागरण में अविस्मरणीय योगदान दिया जा रहा है! गद्य विधा के आविर्भाव तथा कवियों के प्रेरक कविताओं ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित ही नही किया अपितु सही राह भी दिखाई! स्वतंत्रता प्राप्ति के दौर में भी साहित्य ने समाज और सत्ता को मार्गदर्शन करना नहीं छोड़ा और आज भी विभिन्न साहित्यकारों की रचनाओं में भारतीय समाज के ताने-बाने और जीवन के रंग -रूप का विशुद्ध विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं! समाज व साहित्य शरीर व आत्मा के समान है, इन दोनों के साहित्य से ही सृष्टि का सफल संचालन संभव है!
लेखक:- चिंतक कल्याण सिंह.
शोध छात्र सब्जी विज्ञान विभाग!