जगमग-जगमग, झिलमिल-झिलमिल करती आई दिवाली।


कविता।

जगमग-जगमग झिलमिल-झिलमिल करती आई दिवाली 
सबको पावन, पवित्र , प्रांजल, निर्मल करती आई दिवाली, 
जग का जन-जीवन घर चौखट मंगल करती आई दिवाली, 
घर-आंगन ,मनोरथ ,भविष्य उज्ज्वल करती आई दिवाली,
बालवृंद कोमल मन हृदय चतुर चंचल करती आई दिवाली,
जगमग-जगमग झिलमिल-झिलमिल करती आई दिवाली।
धरती का कण ज्योतिर्मय दुग्ध धवल करती आई दिवाली 
नील गगन नभ मंडल को नूतन,नवल करती आई दिवाली 
दीन-हीन, अकिंचन दूर्बल को सबल करती आई दिवाली 
नयन सुशोभित हर उम्मीदों को प्रबल करती आई दिवाली 
जगमग,जगमग झिलमिल झिलमिल करती आई दिवाली ।
उद्यम,उद्देश्य,परिश्रम पुरूषार्थ सुफल करती आई दिवाली ,
हर भारतवंशी का जीवन सहज,सरल करती आई दिवाली ,
हर अंतस को निर्भय स्वतंत्र निश्छल करती आई दिवाली,
दिल,दिमाग़,मस्तिष्क को संबल प्रदान करती आई दिवाली 
अमावस्या के घोर अंधकार को निर्मूल करती आई दिवाली 
जगमग-जगमग झिलमिल-झिलमिल करती आई दिवाली।
ईष्र्या, द्वेष और अहंकार को निष्फल करती आई दिवाली,
दया, करुणा ,परोपकार का कमल खिलाती आई दिवाली, 
समाज में समन्वय ,साहचर्य का भाव जगाती आई दिवाली ,
गुलाबी मौसम, बहारों, फिजा संग मुस्कराती आई दिवाली,
जगमग-जगमग  झिलमिल-झिलमिल करती आई दिवाली 
छल ,कपट लालच लोभ हर दुर्भाग्य मिटाती आई दिवाली,
धन, यश, कीर्ति, वैभव का सौभाग्य बनाती आईं दिवाली ,
खेत खलिहान वन बाग तड़ाग उपवन हर्षाती आईं दिवाली,
अन्याय असत्य पर विजय का झंडा फहाराती आई दिवाली ।
जगमग-जगमग झिलमिल-झिलमिल करती आई दिवाली।

स्वरचित 
मनोज कुमार सिंह 
लेखक/साहित्यकार/ स्तम्भकार

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