बचपन के सपनों को पंख दे रहा है प्राथमिक विद्यालय बासूपार बनकट


आज़मगढ़।

रिपोर्ट: वीर सिंह

जहाँ शिक्षा सिर्फ किताबों तक नहीं, ज़िंदगी को सँवारने तक पहुँच रही है

आज़मगढ़ (अजमतगढ़): जब किसी गांव की गलियों से उम्मीदें फूटती हैं और स्कूल की घंटी सिर्फ पढ़ाई नहीं, बदलाव की गूंज बन जाती है — तो समझिए वहां कुछ असाधारण हो रहा है। 
जनपद आज़मगढ़ के शिक्षा क्षेत्र अजमतगढ़ में स्थित प्राथमिक विद्यालय बासूपार बनकट आज एक ऐसी मिसाल बन चुका है, जो यह साबित करता है कि अगर नीयत साफ हो और इरादे बुलंद हों, तो सरकारी स्कूल भी गुरुकुल बन सकते हैं। इस परिवर्तन की अगुवाई की है ग्राम प्रधान सिद्दीका परवीन अब्दुल वहाब ने — जिनका सपना था कि गांव का कोई बच्चा भी इस देश के भविष्य की दौड़ में पीछे न छूटे। और उनके इस सपने को साकार करने में विद्यालय के शिक्षकों ने अपना पसीना बहाकर, ईमानदारी और समर्पण की मिसाल पेश की है।

एयर कंडीशन क्लासरूम, प्रोजेक्टर, वाई-फाई और स्मार्ट लर्निंग:

इस छोटे से गांव के स्कूल में आज वह सारी सुविधाएं मौजूद हैं, जो अक्सर बड़े शहरों के महंगे स्कूलों में होती हैं। हर कक्षा में एयर कंडीशन लगाया गया है ताकि भीषण गर्मी भी बच्चों की पढ़ाई में रुकावट न बन सके। प्रोजेक्टर और वाई-फाई की मदद से अब शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि डिजिटल दुनिया से जुड़ चुकी है। बच्चे न सिर्फ पढ़ते हैं, बल्कि समझते हैं, देखते हैं, और खुद सीखने की पहल करते हैं।

सुरक्षा और पारदर्शिता का मॉडल:

हर कमरे में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। खास बात ये कि अभिभावक अपने बच्चों की पढ़ाई को सीधे मोबाइल पर देख सकते हैं। यह न केवल पारदर्शिता को बढ़ाता है, बल्कि बच्चों की सुरक्षा और अनुशासन के लिए भी कारगर कदम है।
बच्चों के लिए पुस्तकालय और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी:

विद्यालय में एक सुंदर और उपयोगी पुस्तकालय की स्थापना की गई है, जहाँ से गांव के बच्चे अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकते हैं। यह केवल एक कमरा नहीं, बल्कि सैकड़ों सपनों की पाठशाला है — जो किसी दिन इन बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक या प्रशासक बना सकती है।

प्रकृति से जुड़ा माहौल और सांस्कृतिक चेतना:

विद्यालय के चारों ओर हरे-भरे पेड़-पौधे और रंग-बिरंगे फूल लगाए गए हैं। दीवारों पर महापुरुषों की तस्वीरें और प्रेरक स्लोगन बच्चों को केवल किताबें नहीं, ज़िंदगी के मूल्य भी सिखाते हैं। ये दीवारें अब ज्ञान की कहानियाँ कहती हैं।

भोजन भी सम्मान और स्वास्थ्य के साथ:

ग्राम प्रधान द्वारा एमडीएम (मिड डे मील) योजना को भी पूरी गंभीरता से लागू किया गया है। बच्चों को रोज़ अलग-अलग और पौष्टिक भोजन दिया जाता है — एक ऐसा प्रयास, जो पेट भरने से कहीं ज़्यादा, प्यार और परवाह का प्रतीक है।

शिक्षक नहीं, पथप्रदर्शक:

विद्यालय के शिक्षक समय पर पहुंचते हैं, मेहनत से पढ़ाते हैं और हर छात्र को आगे बढ़ाने के लिए अतिरिक्त समय भी देते हैं। उनका उद्देश्य सिर्फ पाठ्यक्रम पूरा करना नहीं, बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करना है। इस प्रेरक प्रयास को देखने के लिए गाँव और आसपास के इलाकों से लोग आने लगे हैं। हाल ही में आसिफ सल्लू (विधानसभा गोपालपुर), नेसार खान भोला, आमिर खान सहित कई गणमान्य लोग स्कूल पहुँचे और वृक्षारोपण कर इस बदलाव का हिस्सा बने। हसीब खान, अब्दुल कदीर शेख, अरशद खान, सोफियान खान, सुहेल अहमद, सेराज गुड्डु, फिरोज अहमद जैसे कई अन्य सजग नागरिक भी मौजूद रहे। वही अब अभिभावकों की आंखों में गर्व और उम्मीद की चमक साफ झलक रही है।" 
वहीं ग्राम प्रधान सिद्दीका परवीन के पति से जब बात की गई, तो उन्होंने कहा —"हमारा सपना है कि हमारा गांव भी उस भारत का हिस्सा बने जहाँ हर बच्चा शिक्षा के ज़रिए अपनी दुनिया खुद रच सके। ये स्कूल सिर्फ ईंट और दीवार नहीं, यह गांव का भविष्य है।

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