सीमा का शेर लौटा गांव, ढोल-नगाड़ों संग जांबाज़ का अभिनंदन


आज़मगढ़।

रिपोर्ट: वीर सिंह

सीमा का शेर लौटा गांव, ढोल-नगाड़ों संग जांबाज़ का अभिनंदन

माँ की ममता, मिट्टी का प्यार और वीरता का सम्मान: बीएसएफ से लौटे जांबाज़ का गांव में हुआ भावुक स्वागत।

सगड़ी/आजमगढ़: बॉर्डर की बर्फ़ीली हवाओं से लेकर दुश्मन के गोलियों की बरसात तक… देश की रक्षा करते-करते पूरा जीवन गुज़ार देने वाले वीर सपूत दयाशंकर शर्मा जब बीएसएफ से उपनिरीक्षक पद से सेवानिवृत्त होकर अपने गांव (कंजरा दिलशादपुर,खपरैला) लौटे, तो गांव की गलियां गूंज उठीं।
डाक बंगला जीयनपुर से शुरू हुआ काफिला सिर्फ़ गाजे-बाजे और फूल-मालाओं का नहीं था, बल्कि वह था—तीस वर्षों से देश की सीमाओं की रक्षा करके लौटे उस बेटे का जुलूस, जिसे देखने के लिए हर आंख रास्तों पर टिकी थी।
जैसे ही गांव की चौखट पर वे पहुंचे, तो बुजुर्गों ने आशीर्वाद दिया, बच्चों ने जयकारे लगाए और युवाओं ने उन्हें कंधे पर उठाकर आसमान तक सम्मान पहुंचा दिया।
फूलों की वर्षा, भारत माता की जय और देशभक्ति गीतों के बीच वह दृश्य ऐसा था मानो गांव ने अपने खोए हुए बेटे को फिर से पा लिया हो।
वीरता की सुनहरी गाथा

1986 में जब दयाशंकर शर्मा ने वर्दी पहनकर “मातृभूमि की सेवा” की शपथ ली थी, तभी से उन्होंने अपना जीवन सीमाओं की चौकसी में समर्पित कर दिया।
कारगिल युद्ध के दिनों की सर्द रातें, पाकिस्तान सीमा पर तनाव के बीच बीती अनगिनत ड्यूटियां और देश के लिए हर पल जागता हुआ उनका जज़्बा—यह सब उनकी वीरता की अमर गाथा है।
आज जब वह सेवानिवृत्त होकर लौटे, तो गांव ने सिर्फ़ उन्हें नहीं, बल्कि उस हर त्याग को सम्मानित किया, जो उन्होंने और उनके परिवार ने देश के लिए किया।
परिवार की आंखों में गर्व और आंसू

घर पहुंचते ही पत्नी पुष्पा देवी की आंखें छलक पड़ीं—आंसू गर्व के थे, और भावनाओं से भरे भी।
बड़े भाई रमाशंकर शर्मा, छोटे भाई उमाशंकर शर्मा और बेटे-बेटियों—प्रवीण, प्रशांत, सुधीर (टिंकू), प्रिया और दीपिका—सबका सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
गांव के हर शख़्स ने उन्हें देखकर यही महसूस किया कि—“यह सिर्फ़ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे गांव की जीत है।”
यह स्वागत सिर्फ़ सेवानिवृत्त जवान का नहीं था, यह था—मिट्टी का अपने बेटे को गले लगाना, माँ का अपने सपूत को आशीर्वाद देना और देश का अपने प्रहरी को सलाम करना।

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