लेख।
लेख: सामाजिक समरसता और समता मूलक समाज के प्रबल पक्षधर तथा कुप्रथाओं के कारण सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रही बहुतायत आबादी के सम्मान स्वाभिमान सच्चे लडाके डॉ भीम राव अंबेडकर ने सामाजिक न्याय को आधुनिक अर्थों में न केवल परिभाषित किया बल्कि सामाजिक न्याय के लिए जीवन पर्यन्त जीवटता से लडते रहे। एक सभ्य आधुनिक लोकतंत्र में सामाजिक न्याय की अवधारणा भी स्वतंत्रता और समानता के समकक्ष है। सामाजिक न्याय की समुचित व्यवस्था किये बिना समाज अराजकता का शिकार हो जाता है। डॉ भीम राव अंबेडकर का जन्म एक ऐसे समाज में हुआ था जो सामाजिक और मानसिक गुलामी के गहरे दलदल में फंसा हुआ था। सदियों से सामाजिक सम्मान के लिए तरसते इस समाज के लिए सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करना ही एक इंसान के रूप में पहचान कायम करने के लिए आवश्यक था । इसलिए के लिए डॉ भीम राव अंबेडकर ने साहस के साथ जो बौद्धिक,राजनीतिक संघर्ष किया उससे सदियो से सोई हुई कौम में जीवंतता, जागृति और अपने हक हूकूक के लिए संघर्ष करने की ताकत आई। इस जीवंतता और जागृति का स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि- एक अछूत जाति में पैदा हुए डॉ भीम राव अंबेडकर को भारत की दक्षिणपंथी , वामपंथी और मध्यममार्गी सहित लगभग समस्त राजनीतिक चिंतन धाराओ में आज अपना बना लेने की प्रतिद्वंद्विता और प्रतिस्पर्धा चल रहीं हैं। अगणित प्रतिभाओं से परिपूर्ण पराक्रमी व्यक्तित्व जाँत-पांत ऊॅच-नीच की मानव निर्मित समस्त सरहदों को पार कर जाते हैं। उसकी विलक्षणताओ के सामने सारी संकीर्णताए ध्वस्त हो जाती हैं। आज भारत की सभी राजनीतिक जमातें समवेत स्वर से डॉ भीम राव अंबेडकर की प्रतिमा, कुशाग्रता और विलक्षता का जी-भर कर बखान कर रही हैं।
भारतीय संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष की हैसियत से संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ भीम राव अम्बेडकर का जन्म आज ही के दिन 14 अप्रैल को महू (मध्यप्रदेश) में म्हार जाति में हुआ था। सामाजिक रूप से तिरस्कृत और बहिष्कृत समाज और आर्थिक रूप से विपन्न परिवार में पैदा होने के बावजूद डॉ भीम राव अम्बेडकर उच्चकोटि के विद्वान, उत्कट अर्थशास्त्री, प्रखर कानूनविद और प्रख्यात समाजशास्त्री थे। स्वयं की जलालत और जहालत भरी जिंदगी को बदलने की वेदनापूर्ण चाहत रखने वाले और अपने दौर की सडी-गली सामाजिक परिस्थितियों और कुरीतियों कुप्रथाओं अंधविश्वासों और कूपमंडूकता के रंग में रंगे सांस्कृतिक परिवेश को बदलने की छछटपटाहट डॉ भीम राव अम्बेडकर को दुनिया के क्रांतिकारियो की परम्परा स्थापित करती है। क्योंकि एक सच्चा क्रांतिकारी वही होता हैं जो अपने दौर की अमानवीय ,अवैज्ञानिक तथा अत्याचार और शोषण पर आधारित व्यवस्था और परिस्थितियों से समझौता नहीं करता है बल्कि पूरी उर्जा पूरे उत्साह और पूरी ताकत से उसे बदलने का प्रयास करता है। इस दृष्टि से बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर एक महान क्रांतिकारी थे। अन्यायपूर्ण और अत्याचारपूर्ण सामाजिक परिस्थितियों के सामन अपने माथे पर अछूत का कलंक लेकर पैदा हुए बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर ने भारत के अछूतों की दुर्दशा का मार्मिक वर्णन "अछूत भारत"(Untouchable India) नामक पुस्तक में किया है। इस पुस्तक में डाक्टर भीम राव अम्बेडकर ने भारत की अछूत प्रथा की तुलना यूनान सहित दुनिया में प्रचलित और इतिहास में वर्णित तमाम दास प्रथाओं से करते हुए बताते हैं कि- भारतीय समाज में प्रचलित अछूत प्रथा दुनिया में प्रचलित समस्त दास प्रथाओं से भी बदतर सबसे घिनौनी और अमानवीय प्रथा थी। मनुष्य के द्वारा मनुष्य के शोषण पर आधारित कुप्रथाओं का विश्लेषण करने पता चलता है कि- अछूत प्रथा मानवता के मस्तक पर एक काला धब्बा है। भारतीय समाज में व्याप्त अछूत प्रथा के अंतर्गत एक बार जो अछूत घोषित हो जाता था वह जीवन भर अछूत रहता था यहाँ तक कि उसके घर आंगन में पैदा होने वाली नवजात संतानें भी अछूत के रूप में पैदा होती थी। यह पुस्तक भारतीय समाजशास्त्र ,सामाजिक चिंतन और भारत की सामाजिक संरचना और बुनावट की दृष्टि से मील का पत्थर है। इस पुस्तक में भारतीय समाज में गहरे रूप से समाहित जाति व्यवस्था पर डॉ भीम राव अम्बेडकर ने करारा प्रहार किया है,उनके अनुसार जातिवाद को ध्वस्त किये बिना सच्चे अर्थों में लोकतंत्र की स्थापना नहीं की जा सकती है। इस पुस्तक का गहराई से अध्ययन किए बिना हम एक सभ्य स्वस्थ्य सहिष्णु और समरस समाज का निर्माण नहीं कर सकते हैं। वर्ण व्यवस्था और अनगिनत जातियों में बटे बिखरे भारतीय समाज का ईमानदार अध्ययनकर्ता और विश्लेषक होने के नाते बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर को महान संविधानविद के साथ साथ एक महान और क्रांतिकारी समाजशास्त्री भी माना जाता है। डॉ भीम राव अम्बेडकर ने भारत की सामाजिक संरचना और सामाजिक बुनावट का गहराई और गम्भीरता से अध्ययन किया था और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि- शिक्षा
पराधीनता मिटाने, जीवन परिवर्तन और सामाजिक परिवर्तन का सबसे सशक्त औजार हैं और मानवीय गरिमा से परिपूर्ण बेहतर जीवन प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम हैं। शिक्षा को हर तरह के बेहतर परिवर्तन का सबसे सशक्त औजार मानने वाले डॉ भीम राव अम्बेडकर ने सदियों से शिक्षा से वंचित अपने समाज को शिक्षित प्रशिक्षित करने के लिए श्लाघनीय प्रयास किया। उनका मूल मंत्र था शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो जो बेहतर पढाकू होगा वही बेहतर लडाकू होगा। डाॅ अम्बेडकर ने अपने परिश्रम और पराक्रम से समाज के उच्च वर्ग की चाकरी करने वाले दलित समाज को राजनीतिक रूप से नेतृत्व करने वाले समुदाय के रूप में बदल दिया। यह बदलाव डॉ भीम राव अम्बेडकर द्वारा दलित समाज को शिक्षित प्रशिक्षित करने और राजनीतिक रूप से जागरूक करने ईमानदार प्रयासों और प्रयत्नों का स्वाभाविक परिणाम था। बहुआयामी प्रतिभा के धनी डॉ भीम राव अम्बेडकर एक विद्वान अर्थशास्त्री भी थे। एक गतिशील अर्थव्यवस्था और विविध आर्थिक समस्याओं के समाधान की दृष्टि से उनकी पुस्तक " द प्रॉब्लम ऑफ रूपी " एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। भारत रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर के विचारों की देन हैं। डॉ भीम राव अम्बेडकर संविधान सभा के इकलौते ऐसे सदस्य थे जो दो बार संविधान सभा के लिए निर्वाचित हुए थे। एक बार बंगाल से मुस्लिम लीग विशेषकर योगेन्द्र नाथ मंडल के सहयोग से और दूसरी बार पंडित जवाहरलाल नेहरू की सिफारिश पर मुम्बई प्रेसीडेंसी से। शोषित उत्पीडित समाज में अवश्य पैदा हुए थे डॉ भीम राव अम्बेडकर परन्तु वे वैचारिक दृष्टि से पूर्णतः मानवतावादी थे वह वैचारिक दृष्टि प्रतिक्रियावादी कत्तई नहीं थे। इसलिए डॉ भीम राव अम्बेडकर शोषित और वंचित समाज के सजग सचेत सशक्त प्रहरी के साथ- साथ महान मानवतावादी थे। महान मानवतावादी मूल्यों में अडिग आस्था रखने वाले डॉ भीम राव अम्बेडकर ने संविधान सभा में एक होनहार सदस्य की हैसियत से भारतीय संविधान में हर नागरिक के लिए गरिमामयी जीवन प्रदान करने और उसे सुरक्षित और सुनिश्चित करने के लिए कई संवैधानिक प्रावधानो को जोडने का महान महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कार्य किया। डॉ भीम राव अम्बेडकर खोखली आजादी के नहीं बल्कि सच्ची आजादी के समर्थक थे। एक स्थान पर उन्होंने कहा था कि- आर्थिक असमानता के साथ साथ सामाजिक असमानता के विरुद्ध संघर्ष कर वास्तविक आजादी हासिल की जा सकती है। अततः डॉ भीम राव अम्बेडकर का प्रतिभाशाली, ओजस्वी और संघर्षशील व्यक्तित्व हर किसी को अनुप्राणित और अनुप्रेरित करते हुए सीख देता है कि बेहतर शिक्षा-दीक्षा से ही समरसता से परिपूर्ण समतामूलक समाज बनाया जा सकता है।
लेखक: मनोज कुमार सिंह "प्रवक्ता "
बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ ।