भारतीय लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ एवं युवा तुर्क समाजवादी प्रधानमंत्री थे आदरणीय चंद्रशेखर सिंह।

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भारतीय लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ एवं युवा तुर्क समाजवादी प्रधानमंत्री थे आदरणीय चंद्रशेखर सिंह।

लेख: आज बात करते हैं भारत के आठवें प्रधानमंत्री एवं युवा तुर्क समाजवादी नेता चंद्रशेखर सिंह की भारत के पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने से पहले कोई भी सरकारी पद लेने से इंकार कर दिया था। भारत के पहले समाजवादी प्रधानमंत्री जिनको की पार्टी राजनीति से ऊपर हटकर सर्वदलीय नेताओं की स्वीकार्यता थी विलक्षण प्रतिभा के धनी माननीय चंद्रशेखर जी इसलिए भी प्रसिद्ध थे कि राजनीति उनके रोम रोम में बसी थी कारण था लोक सेवा और आम जनमानस की आवाज को लोकतंत्र के संसद में बेबाकी से रखना एक संदर्भ याद आता है जब उन्होंने इंदिरा गांधी के सामने भी बेबाकी से यहां तक कह दिया था कि अगर कांग्रेसमें जिस दिन समाजवाद खत्म हो जाएगा उस दिन में कांग्रेस को तोड़ दूंगा शायद यही कारण रहा कि बाद में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ भी दिया था। 
शेखर जी का जन्म 1 जुलाई 1927 को उत्तर प्रदेश के इब्राहिमपट्टी में एक राजपूत किसान परिवार में हुआ था उनकी प्रारंभिक शिक्षा वही एक प्राइमरी स्कूल में तथा सतीश चंद्र पीजी कॉलेज से कला स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद 1950 में राजनीतिक विज्ञान में मास्टर डिग्री प्राप्त करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया प्रधानमंत्री जी छात्र जीवन से राजनीत क्षेत्र में आकर्षित हो गए थे छात्र जीवन में राजनीति की शुरुआत उन्होंने डॉ राम मनोहर लोहिया के साथ एवं उनके आदर्शों पर चलकर की शायद इसीलिए उन्हें क्रांतिकारी एवं तेजतर्रार आदर्शवादी के रूप में जाना जाता है समाजवाद उनकी मौलिक विचारधारा में सबसे ऊपर थी वह कई बार समाजवादी आंदोलन में शामिल भी हुए जिनमें जिला प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बलिया के सचिव भी चुने गए और उसके बाद उन्हें उत्तर प्रदेश में पार्टी के महासचिव का पद भी मिला। अपने समाजवादी छवि के चलते उन्हें उत्तर प्रदेश से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा के लिए चुना गया और एक सांसद के रूप में उन्होंने पहला कार्यभार शुरू किया वह वर्ष था 1962, 1965 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने का मन बनाया और 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बने जिसके बाद 1968 के राज्यसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा के सदस्य फिर से चुन लिए गए। यंग इंडियन की स्थापना और संपादन किया 1969 में जिसे दिल्ली से प्रकाशित सप्ताहिक पत्रिका के रूप में भारतीय लेखन में विशेष स्थान प्राप्त हुआ जन शेखर जी इस के संपादकीय सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष थे जिसको 1975 की इमरजेंसी में आपातकालीन दौरान बंद कर दिया गया था फरवरी 1989 में इसका नियमित प्रकाशन फिर से शुरू कर दिया गया। पहली बार 1977 में बलिया से लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद राज्यसभा से इस्तीफा देकर उन्होंने यह बतलाया कि आम जनमानस की क्रांति भी उनके वक्तव्य से हो सकती हैं। 1977 से 2004 तक सभी लोकसभा चुनाव वह बड़ी आसानी से जीते रहे और सर्वदलीय नेता के रूप में अपनी छवि को और मजबूत एवं प्रगाढ़ करते रहे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान पटियाला जेल में भेज दिया गया था जेल से ही उन्होंने अपनी एक डायरी प्रकाशित करवाई जिसका नाम था "मेरी जेल डायरी" इसके बाद ही उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और जनता पार्टी में शामिल होकर जनता पार्टी के अध्यक्ष चुने गए जिसने 1977 के भारतीय आम चुनाव के बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनायी। 1984 के भारतीय आम चुनाव में जनता पार्टी के बिगड़ते रसूख को देखते हुए उन्होंने जनता दल समाजवादी गुट का गठन कर लिया और उसी से आगे बढ़ते रहें जनता के साथ सीधे संपर्क को नवीनीकृत करने के लिए उन्होंने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक लगभग 4260 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए कन्याकुमारी से नई दिल्ली में राजघाट महात्मा गांधी की समाधि तक पदयात्रा की। उन्होंने कुछ सांसदों और विपक्ष के कद्दावर नेता राजीव गांधी के समर्थन से विश्वास प्रस्ताव जीता और भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली कहा जाता है कि भारतीय राजनीति का कुशल रणनीतिकार और समाजवादी नेता पहली बार भारत के सर्वोच्च पद पर मंचासीन हुआ है जिसकी विचारधारा मे केवल समाजवाद ही पूर्ण रूप से प्रचलित था। 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक भारत के आठवें प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। भारतीय राजनीति के साथ-साथ खेलकूद एवं कला संबंधी विषयों से भी उनका विशेष लगाव रहा इन्हीं सब को देखते हुए उन्होंने कई स्कूलों एवं कालेजों की स्थापना की जिसमें सभी वर्गों लोगों को समान रूप से शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। एक सांसद के रूप में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का वक्तव्य पक्ष और विपक्ष दोनों बेहद ध्यान से सुनते थे उनका भाषण इसलिए भी प्रचलित था कि यह राजनीति के लिए नहीं बल्कि देश की उन्नति और विकास के लिए होता था। शेखर जी का विशेष गुड़िया था कि वह आत्मा की आवाज पर प्रशंसा और आलोचना करते थे तब वह यह नहीं देखते थे कि ऐसा करने से उन्हें क्या लाभ और हानि हो सकती है शायद इसीलिए उन्हें सर्वदलीय नेताओं की स्वीकृति बड़ी आसानी से प्राप्त थी। इनका विवाह दूजा देवी के साथ हुआ था जिनके 2 पुत्र पंकज और नीरज हैं वे अपने समाज, देश से निस्वार्थ भाव की सेवा से जुड़े हुए थे अध्ययन में विशेष रूचि होने के नाते अच्छे वक्ता के साथ-साथ अच्छे श्रोताओं में भी उनकी गिनती समान रूप से विशेष लोगों में थी। उनका मानना था की "युवा को शक्ति मानने वाला ही, देश को एक स्वस्थ प्रगति की तरफ बढ़ाता है क्योंकि उसमें स्वहित के बजाय राष्ट्रीय कल्याण का भाव होता है" उन्होंने समाज के पिछड़े वर्गों के साथ मिलकर उनके लिए बहुत से कार्य किए दलितों एवं पिछड़ों को सामान्य जीवन दिलाने की लड़ाई सारा जीवन लड़ते रहे। उन्होंने कांग्रेस पार्टी में "जिंजर ग्रुप" की शुरुआत भी की थी जिसके सदस्य अविभाजित कांग्रेस पार्टी के समय में खुद फिरोज गांधी और सत्येंद्र नारायण भी थे इमरजेंसी लागू होने के बाद चंद शेखर को मीसा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था जिसके बाद उन्होंने पार्टी छोड़ने का मन बना लिया। उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन में हमेशा पैसों की राजनीति को दरकिनार करके सामाजिक बदलाव और लोकतांत्रिक मूल्यों की राजनीति पर जोर दिया। सबसे पहले उन्होंने संसद के पटल पर यह विचार रखा था कि भारत की 70% जनता गांव में निवास करती है यदि गांव का विकास हो जाए तो भारत का अपने आप ही विकास हो जाएगा विकास क्रम में सबसे पहले बाल शिक्षा पर विशेष जोर देते थे। क्योंकि उनका मानना था कि आज का बालक कल का नेता और देश का भविष्य है अतः बच्चों के साथ मान्यता का एवं सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए निर्दयता का नहीं। उन्होंने "डायनामिक्स ऑफ चेंज" नामक चंद्रशेखर  जी का एक संग्रह भी प्रकाशित करवाया था जिसमें उन्होंने देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और "यंग इंडिया" में जो कुछ लिखा था उसे संग्रहित किया था चंद शेखर जी भाषा के विद्वान भी कहे जाते थे हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर इनकी प्रभावी पकड़ थी। लेखन के मामले में उनकी तुलना भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से की जाती है, भारतीय राजनीति में उन्हें अपने यात्राओं और सामाजिक परिवर्तन का प्रणेता भी और कार्यकर्ताओं को शिक्षा कार्यक्रमों तथा पिछड़ों के उत्थान हेतु जागरूक जननायक भी माना जाता है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह प्रत्येक कार्य को पूर्ण समर्पण भाव से करते थे यदि वह किसी विषय विशेष पर लिखते थे तो उसकी तैयारी पहले से करते थे वह विषय का बारीकी से अध्ययन करते थे और लिखते समय आदि से अंत तक अपनी पकड़ बनाए रखते थे। 8 जुलाई 2007 को नई दिल्ली के अस्पताल में उनका निधन हो गया जिसके बाद समाजवाद एवं डॉ राम मनोहर लोहिया द्वारा स्थापित किया गया समाजवाद का नारा बुलंद करने वाला उनका परम शिष्य शून्य में विलीन हो गया, मृत्यु के पश्चात भारतीय राजनीति में संसद के पटल पर चंद्रशेखर जैसा नेता शायद ही कभी हो पाए, भारतीय लोकतंत्र के स्तंभ को मजबूती से धारण करने वाले प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जैसे लोग अपने विचार और मूल्यों से लोकतंत्र की अस्मिता को बचाए रखा। उस विराने शून्य को भर पाना तो शायद संभव नहीं पर उनके बताए हुए मार्ग पर चलकर शायद ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी नेता को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर पाएं।

लेखक: आलोक प्रताप सिंह
विचारक एवं विश्लेषक।

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